Sunday, September 13, 2015

आयकर, कितना 'गैरजरूरी'...?


'देश की संपत्ति' सुब्रह्मण्यन स्वामी का मानना है कि देश में आयकर की व्यवस्था 'बंद' की जानी चाहिए। पता नहीं वह कितने 'सही' हैं...!!

मौजूदा समय में देश के अंदर केवल तीन फीसदी लोग कर चुकाते हैं। इस लिहाज से देखें तो वह 'सही' प्रतीत होते हैं। लेकिन, यदि बाकी के 97 फीसदी लोगों को भी कर दायरे में ले आया जाए तो निश्चित रूप से न केवल सरकारों की आमदनी बढ़ेगी बल्कि देश के 'सुपर' संचालन के लिए जरूरी धनराशि भी मिलेगी जो लौट-फिरकर जनता के ही काम आती है।

यदि ऐसा हो सके तो आयकर के मौजूदा स्लैब के बजाय नए तरीके से नई श्रेणियां बनाई जा सकती हैं। जैसे, मौजूदा समय के 10, 20 और 30 फीसदी के कर के बजाय 5, 7 और 10 फीसदी कर वसूला जा सकता है। कर देने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाने से टैक्स की दर घट जाने के बावजूद सरकार को ज्यादा 'वसूली' मिलेगी। लेकिन यह एक 'मुश्किल' काम है। इसमें 'ऊर्जा' और 'समय' लगेगा, 'दिमाग' भी लगाना पड़ेगा। इतना 'भरोसा' अभी के नेताओं पर तो नहीं है। इसलिए, यही सही लग रहा है कि इनकम टैक्स को 'खत्म' ही कर दिया जाए। लेकिन, यह जरूरी नहीं कि यह 'सही' हो क्यों यदि ऐसा होता तो दुनिया के ज्यादातर देशों में आयकर नहीं वसूला जाता...।

ध्यान देने वाली बात यह है कि दुनिया के जिन देशों में आयकर नहीं वसूला जाता उनमें से ज्यादातर उच्च प्रतिव्यक्ति आय वाले भौगोलिक रूप से छोटे देश हैं।
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