Thursday, April 09, 2015

'नौकरी' या 'पत्रकारिता'... मेरी चॉइस...!

पत्रकार कभी 'रिटायर' नहीं होते...। लाइफटाइम 'जॉब' है यह। रिटायर वे 'नौकरी' से हो जाते हैं और उस 'रिटायरमेंट' के बाद ही उन्हें सच्चे 'ज्ञान' की प्राप्ति होती है।

जितना समय वे 'नौकरी' करते हैं 'पत्रकारिता' शायद कर ही नहीं पाते। वास्तव में पत्रकारों का काम 'नौकरी' करना या मांगना है ही नहीं। नौकरियां तो दूसरे सेक्टर में कई गुना ज्यादा 'बेहतर' हैं..। यह समाज, देश और दुनिया की सेवा का काम है। यहां धन की 'इच्छा' नहीं करनी चाहिए। आपके काम और समर्पण के एवज में धन 'स्वत:' आता है, शायद...

दरअसल, पत्रकार कभी 'नौकरी' कर ही नहीं सकता। जितने भी 'बड़े' पत्रकार हुए हैं उनमें से कभी किसी ने कोई 'नौकरी' नहीं की। 'निराला' सबसे बड़े उदाहरण हैं। पत्रकारिता का नुकसान ही तब से शुरू हुआ है जबसे पत्रकार 'नौकरी' ढूढने लगे और उन्हें 'मिलने' भी लगी।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि खुद पत्रकार पत्रकारिता को 'मजदूरी' की तरह करना चाहते हैं जो हो ही नहीं सकता...। पत्रकार तो 'देश की संपत्ति' होते हैं और उन्हें देश 'देता' है। जो लोग मीडिया के क्षेत्र में नौकरी ढूंढ रहे हैं वे एक 'बड़ी' गलती कर रहे हैं। वे दरअसल 'मजदूर', 'नौकरीपेशा' या 'अंग्रेजों के जमाने के क्लर्क' बनने की कोशिश कर रहे हैं। उनका 'रेट' बाजार तय करता है जो 'वही' है जो उन्हें 'मिल' रहा है...।

अब 'असली' पत्रकारों की यह जिम्मेदारी है कि यह 'बात' वे पत्रकार बनने की उम्मीद पालने वाले नए रंगरूटों को समझा दैं। सब समझ जाएंगे... बड़े 'समझदार' हैं सब...।

Wednesday, April 08, 2015

ऐेसी पड़ी गवर्नर की 'लताड़'...

मंगलवार की सुबह होते ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से खबर आती है कि रेट कट में कोई कमी नहीं होगी इस बार...। थोड़ी देर बाद बड़ी बैंकों के बड़े अधिकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहते हैं कि वे ब्याज दरें 'अभी' नहीं घटाएंगे।

करीब 10 कारण बताए गए जो अर्थशास्त्र की 'परिभाषा' के अनुसार बिल्कुल 'ठीक' लग रहे थे। ज्यादा कुरेदा गया तो बोले कि जून तक बताएंगे कि ईएमआई 'कम' होगी या नहीं...। ईएमआई कम करने के सवाल पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चेअरपर्सन अरुंधति भटनागर तो सबसे ज्यादा 'नाराज' भी हुईं।

प्रेस कॉन्फ्रेस खत्म होते-होते आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन ने जोरदार तरीके से बैंकों के शीर्ष क्रम को इस बात के लिए 'लताड़ा'। डांट पड़ते ही सभी बैंकों में कर्ज की ब्याज दरें कम करने की 'होड़' सी लग गई।

शुरुआत सबसे पहले एसबीआई ने की जिसकी 'मालिक' ने सबसे ज्यादा 'गुस्सा' दिखाया था। जय हो...!

Monday, April 06, 2015

'गाली-गलौज नहीं करूंगा तो...'

कल मेरे एक सहयोगी पूछ रहे थे कि नेताओं से अनाधिकारिक रूप से बात करो तो वे कितने 'जहीन' और 'समझदार' नजर आते हैं लेकिन मंच पर जाते ही उन्हें न जाने क्या हो जाता है... पहले भी एक बार किसी ने पूछा था और एक बार फारुख शेख ने भी ऐसा ही कहा था। उसी संदर्भ में यह बात याद आई है।

...अलीगढ़ में एक बड़े दलित नेता थे... अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रोफेसर...। इंदिरा गांधी के 'कड़े' आलोचक... खूब 'गालियां' देने वाले...। बात दिल्ली तक पहुंची तो इंदिरा गांधी ने उन्हें बुलवाया और कहा कि हम तो तुम्हें 'मंत्री' बनाना चाहते हैं लेकिन क्या करें तुम 'गाली-गलौज' बहुत करते हो...।

इसपर वह बोले कि कोई बात नहीं, गालियां देना 'बंद' कर देंगे। इंदिरा जी मुस्करा गईं। थोड़ी देर दूसरी बातें चलीं। जब विदाई का वक्त आया उन्होंने पूछ ही लिया कि आखिर तुम इतना गाली-गलौज करते क्यों हो..? तो जवाब आया कि दलितों का नेता हूं, गाली-गलौज नहीं करूंगा तो 'चमर्रे' मेरे पीछे कैसे लगेंगे। यह बात अलग है कि वह खुद भी इसी जाति के थे...।

बाद में वह तत्कालीन सरकार में राज्य मंत्री बने। साल 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो वह 'वहां' चले गए। बाद में उनका 'अंत' बहुत दयनीय स्थिति में हुआ।
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