Tuesday, March 27, 2012

‘समुद्री डाकुओं से बचे तो ईरानी पुलिस ने पकड़ा’

बीच समुद्र में अगर कुछ अनजान लोग बंदूकें लहराते हुए आपके जहाज पर हमला बोल दें तो क्या करेंगे आप? यही सवाल कैडेट भूपेंद्र सिंह के सामने एक दिन अचानक हकीकत बनकर उभरा.

रोमांचक काम और अच्छे वेतन की चाह में मर्चेन्ट नेवी में भविष्य तलाश रहे हजारों भारतीयों में भूपेंद्र भी शामिल हैं.

पढ़ाई पूरी कर पहली नौकरी में ही दूर देश जाने का मौका मिलने पर भूपेंद्र की खुशी का ठिकाना नही रहा. जहाज में दौरे पर नौ और भारतीय थे जिनके मिलने के बाद उन्हे लगा कि ये समुद्री सफर वहीं सुहाना सफर है जिसके सपने वो अक्सर देखा करते थे.

लेकिन हुआ इसका ठीक उलटा....उस सफर ने जो यादें छोड़ी उसे वो भूलना ही पसंद करते है.

भूपेंद्र सिंह नाविकों के उस दल में शामिल थे जिनके जहाज पर ईरान के करीब समुद्र में डाकुओं ने हमला बोल दिया, इस हमले में नाविकों के दल ने एक साथी भी खो दिया. तमाम कानूनी पचड़ों में फंसने के बाद भूपेंद्र और उनके साथी कुछ दिन पहले ही भारत लौटे है.

कैडेट भूपेंद्र सिंह की आपबीती

15 मई, साल 2010 की सुबह हमारा जहाज ‘अल वतूल’ स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज से होकर कोरसक्कान जा रहा था.

दुबई के बिन खादिम कंपनी के तेल वाहक जहाज पर हम दस भारतीय सवार थे.

सब कुछ रोज की तरह सामान्य लग रहा था कि तभी जहाज के चालक दल को अपने पास दो मोटरबोट आते दिखे.

"हमारे कप्तान विक्रम सिंह ने डाकुओं को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर चाकू मार दिया गया. एक और साथी नरेंद्र कुमार के कंधे पर चाकू घोपकर उन्हे घायल कर दिया गया."

मोटरबोट पर सवार छह लोगों ने हमारे कप्तान से पानी मांगा. उन्हें पानी के दो बोतल दे दिए गए जिसके बाद वो चले गए.

कुछ ही देर बीता था कि मोटरबोटों पर सवार ये लोग वापस आए और अल वतूल पर रस्सियों के सहारे चढ़ने लगे.

जहाज के डेक पर चढ़ते ही इन हथियारबंद हमलावरों ने गोली बारी शुरू कर दी.

प्रतिरोध की कोशिश

हमारे कप्तान विक्रम सिंह ने हमलावरों को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर चाकू मार दिया गया. एक और साथी नरेंद्र कुमार के कंधे पर चाकू घोपकर उन्हे घायल कर दिया गया.

ये समुद्री डाकू थे, किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि इस मुसीबत से कैसे निबटा जाए.

जहाज पर मौजूद कुछ लोग गोलियों की आवाज सुनकर छुप गए थे और बाकियों को एक कमरे में बंद कर दिया गया. मै भी इन बंदियों में शामिल था.

इन डाकुओं के पास तरह-तरह के हथियार थे.

हम सब को कमरे में बंद करके डाकुओं ने जमकर लूटपाट किया. हमारे पैसे, कपड़े, सैटेलाइट फोन, वॉकी टॉकी, कैमरे समेत सभी महंगी चीजे लूट ली गई.

जहाज का रडार, जीपीएस और वीएचएफ सिस्टम को भी तोड़ डाला गया.

हम कमरे में बंद ही थे कि तभी एक बार फिर गोली की आवाज सुनाई दी.

साथी की मौत

किसी अनहोनी की आशंका के बीच बाहर चहलकदमी की आवाज थमी तो हम सभी हिम्मत जुटाकर बाहर निकले.

किसी जगह छुपा साथी जीतेन्द्र भी बाहर आया, लेकिन श्रवण का कही अता-पता नहीं था.

बहुत खोजने पर उसकी लाश बगल के कमरे में एक अलमारी में मिली. उसे अलमारी में छुपा पाकर वहीं गोली मार दी गई थी.

हमने श्रवण की लाश को खराब होने से बचाने के लिए उसे जहाज के डीप फ्रीजर में रख दिया.

अभी हादसे को भूलकर आगे बढ़ने का सोचा ही था कि मौसम खराब हुआ और हमें वही लंगर डालना पड़ा.

लेकिन हमारी मुसीबतें यही खत्म नहीं हुई.

ईरानी कोस्ट गार्ड

हमारे जहाज को ईरानी कोस्ट गार्ड के स्पीड बोटों ने घेर लिया. हमे उनके साथ जहाज लाने का आदेश दिया गया.

कोस्ट गार्ड ने हमसे कहा कि हमारा जहाज बिना अनुमति के ईरान की सीमा में प्रवेश कर गया है.

हम सभी को हिरासत में लेकर ईरान के एक टापू खिश्म ले जाया गया जहां अगले ढाई महीने तक हमें रखा गया.

इस बीच हम अपने घर और भारतीय दूतावास संपर्क करने की कोशिश करते रहे लेकिन सफलला नहीं मिली.

फिर हमें बंदर अब्बास के एक जेल में शिफ्ट कर दिया गया, जिस दौरान हमारे खिलाफ ईरान में अवैध प्रवेश और तेल तस्करी करने के मामले चलाए गए.

इस जेल में हमें अगले 19 महीनों तक रखा गया.

भारतीय दूतावास से भी अदालती कार्यवाही में कोई खास मदद नहीं मिली. सांत्वना के कुछ बोल के अलावा उनका रवैया पूरे मामले के प्रति बेहद लचर रहा.

जेल के दिन

भूपेंद्र सिंह के पिता ने उनकी रिहाई के लिए गुजरात से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में भी गुहार लगाई.

इधर जेल में भी हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा.

ईरानी नागरिक बहुल जेल में हम नौ भारतीयों को खूब डराया-धमकाया जाता था.

खाने में सुबह एक रोटी और शाम को थोड़ा सा चावल दिया जाता था. हम शाकाहारी है सो साथ में परोसे गए मांस को हाथ नहीं लगाते थे.

उधर हम जेल में दिन काट रहे थे और इधर भारत में मीडिया और राजनीतिक हलकों में ये मामला प्रखर होकर उभरा.

दिल्ली के कुछ पत्रकारों खासकर धर्मेंद्र कुमार ने मदद की. हालांकि दूतावास से कोई खास मदद नहीं मिली.

घर वापसी की खुशी

दुबई की बिन खादिम कंपनी, जिसके लिए हम काम करते थे उसके किसी अधिकारी ने दो सालों में हम से हाल भी नहीं पूछा. किसी तरह की वित्तीय सहायता भी नहीं दी गई.

कुल साढ़े इक्कीस महीनों तक ईरान की जेल में रहने के बाद इस साल 29 फरवरी को हमें बताया गया कि अदालत ने हमें निर्दोष पाकर बरी कर दिया है.

घर वापस आकर अच्छा लग रहा है. लेकिन जिस कंपनी के लिए काम किया, जान खतरे में डाली उसकी ऐसी बेरूखी गुस्सा और दुख दोनों की अनुभूति कराती है.

कुछ दिन घर में रहकर एक बार फिर जाना चाहता हूं समुद्री यात्रा पर लेकिन इस बार शायद मां-बाप मुझे इसकी इजाजत नही देंगे.

(साभार : तुषार बनर्जी/बीबीसी हिंदी)

Friday, March 16, 2012

साधारण बही खाते सा दिखा प्रणब का बजट!

धर्मेंद्र कुमार

रेल बजट के 'ट्रैक' से उतर जाने के बाद प्रणब दा ने आम बजट को संसद में पेश कर दिया। पांच राज्यों में हालिया हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए इस बजट से आम आदमी को कुछ 'खास' मिलने की उम्मीदें जग गई थीं। लेकिन कमोबेश उन उम्मीदों पर पानी ही फिरा है। तमाम तरह की प्रतिक्रियाओं के बीच जैसा कि भाकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा भी कि इस तरह का बजट तो एक 'क्लर्क' भी बना सकता था। यदि पूरे बजट पर निगाह डाली जाए तो यह वैसा ही साधारण बही-खाता जैसा लगा जिन्हें गांव में हर साल दिवाली पर अपडेट किया जाता है।

एक रिवाज जैसा बन गया कर छूट का मामला पहले की तरह ही दिखा। सामान्य श्रेणी के लिए आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई। पिछले कुछ सालों से यही चलन चलता चला आ रहा है। हालांकि एक परिवर्तन जरूर दिखा। अब आठ लाख रुपये की जगह 10 लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आय पर 30 फीसदी कर लगेगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस तरह से मामूली राहत का झुनझुना ही दिखाया है।

सेवा कर को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया है। इस बढ़ोतरी से लगभग हर क्षेत्र में दाम बढ़ेंगे। पहले से ही महंगाई से त्रस्त आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। सेवा कर के साथ-साथ उत्पादन शुल्क में वृद्धि से आम आदमी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ज्यादातर चीजें और सेवाएं महंगी हो जाएंगी। दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएं महंगी होने जा रही हैं। कारें और सोना खरीदना तो महंगा हुआ ही है, कभी-कभार रेस्त्रां में जाकर दावत उड़ाना भी महंगा हो गया है।

छह विशिष्ट जीवनरक्षक दवाओं एवं टीकों से उत्पाद शुल्क पूरी तरह खत्म करने एवं सीमा शुल्क घटाकर पांच फीसदी की रियायत देने से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों की पहले से ही बहुत महंगी दवाइयां कुछ सस्ती जरूर हो जाएंगी।

देश के विकास के लिए उद्योगों का विकास होना बहुत जरूरी है, लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट में कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे औद्योगिक विकास की सम्भावना को बल मिलता दिखे।

वित्त मंत्री ने सिंचाई सुविधा और भंडारण के लिए बजट में धन का आवंटन बढ़ाने और किसानों द्वारा समय पर चुकाए जाने वाले कर्जे में तीन फीसदी की अतिरिक्त छूट जैसी कुछ चंद अच्छी बातें जरूर की हैं लेकिन सबसे मूल मुद्दा बढ़ती महंगाई है, जिसे इस बजट के जरिए रोका जाना मुश्किल दिख रहा है। नई उर्वरक परियोजनाओं की स्थापना एवं विस्तार के लिए आवश्यक उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में पूरी छूट मिलने की बात कही गई है। इससे किसानों को कुछ फायदा होगा।

10 लाख रुपये की वार्षिक आय सीमा वालों को अंशधारिता (इक्विटी) में 50,000 रुपये के निवेश पर आयकर में 50 फीसदी की छूट देने के लिए एक नई कर छूट योजना 'राजीव गांधी शेयर बचत योजना' का प्रस्ताव रखा गया है, हालांकि, इस योजना के सम्बंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन 10 लाख रुपये सालाना कमाने वाला पहले से ही कर बचत के लिए कई और मदों में निवेश कर रहा व्यक्ति इस योजना में कितना निवेश कर पाएगा, यह सोचने वाली बात है। शेयरों में इस तरह के सीधे निवेश से अभी तक बचे जाने की राय ही दी जाती थी लेकिन अब इससे एक विरोधाभास पैदा होगा। खास बात यह है कि इसमें किया गया निवेश तीन साल से पहले निकाला नहीं जा सकेगा। इस बीच यदि शेयरों में अच्छा मुनाफा हुआ तो इस निवेश का कोई अर्थ नहीं रहेगा। हालांकि मुखर्जी ने शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाले शुल्क को भी 0.125 फीसदी से घटाकर 0.1 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा। इससे जरूर शेयर बाजार में कुछ निवेश वृद्धि की संभावना बनती है।

सरकार ने अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रमों की शेयर बिक्री के जरिये 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में विनिवेश लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपये था लेकिन सरकार सिर्फ 14,000 करोड़ रुपये ही जुटा पाई। इसलिए इस बार इसे 10 हजार करोड़ रुपये कम रखा गया है। बाजार की खराब रही स्थिति को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है लेकिन इसे सरकार की असफलता से भी जोड़कर देखा जा सकता है।

बीते कई सालों के दौरान इस बजट में पहली बार बुजुर्गों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं किए गए हैं। बुजुर्गों के लिए 60 से 80 साल की आयु तक 2.50 लाख रुपये की आमदनी पर पहले की तरह कोई कर नहीं लगेगा। 80 साल से अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों को पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर देय नहीं होगा। हालांकि अब महिलाओं और पुरुष करदाताओं के लिए करमुक्त आय में कोई अंतर नहीं रहा है। इससे पहले पुरुषों के लिए 1.80 लाख तथा महिलाओं के लिए 1.90 लाख रुपये तक की आय करमुक्त होती थी।

हैमलेट का उल्लेख कर प्रणब दा ने यह जरूर कहा कि दयावान बनने के लिए क्रूरता जरूरी है लेकिन पहले से ही महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त सरकार और कितनी क्रूरता दिखाना चाहती है यह समझ से परे है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह सरकार अगले साल अपने अंतिम बजट में कुछ 'लोकप्रिय' प्रावधान ला सकती है जिनसे उसे चुनावों में कुछ मदद मिल सके। इसलिए इस बार तो इसी बजट से गुजारा करना है। तब तक देश की जनता इसी तरह परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार रहे...।

Sunday, March 11, 2012

समुद्री डाकुओं के हमले की आपबीती कहानी!

धर्मेंद्र कुमार
'साल 2010 में 15 मई की सुबह स्ट्रेट ऑफ होर्म्ज होकर कोरसक्कान जा रहे 'अल वतूल' जहाज के पास दो स्पीड बोट पर सवार 6 लोग आए... उन्होंने दूर से पानी मांगा... जहाज के कैप्टन ने पानी दिया... और बोट पानी लेकर वापस चली गई। फिर दूर सागर में एक चक्कर लगाकर लगभग पांच-सात मिनट में फिर से वही स्पीड बोट वापस लौटी... वोट में से 4-5 लोग चलते जहाज से लटके टायरों के सहारे प्लेटफॉर्म पर चढ़ आए... और चढ़ते ही फायरिंग शुरू हो गई...।'

अपने साथ घटी अनहोनी का वृतांत सुनाते कैडेट भूपेंद्र सिंह बताते हैं, 'जहाज के कैप्टन विक्रम सिंह बाहर निकले तो सबसे पहले उन्हीं पर हमला कर दिया गया। उन्हें काबू में कर जहाज पर मौजूद सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा होने के लिए कहा गया। इस दौरान चीफ इंजीनियर नरेंद्र कुमार ने कुछ हरकत की तो उन्हें चाकू से घायल कर दिया। इस अफरातफरी में दो कैडेट सरवन सिंह और जितेंद्र सिंह दो अलग-अलग जगहों पर छिप गए। बाकी के लोगों को घेरकर एक कमरे में ठेल दिया गया। कुछ लोगों को सारा लगेज एक तरफ रखने का हुक्म दिया गया। सारा सामान तथा हाथों में और जेबों में जो कुछ था वो सब छीन लिया गया।'

'इसके बाद, ब्रिज में जाकर रडार, जीपीएस और वीएचएफ सिस्टम को तोड़ डाला। सैटेलाइट फोन, मोबाइल फोन, वॉकी टॉकी को अपने हवाले कर वापस स्पीड बोट पर सवार होकर चले गए। जाते-जाते कमरे का दरवाजा भी बंद कर गए। कुछ देर तक जहाज पर पूरी तरह शांति रही तो हिम्मत जुटाकर आठों लोग दरवाजा तोड़कर बाहर निकले। वहीं कहीं छिपा हुए जितेंद्र सिंह भी बाहर निकल आया। वहीं बाजू के कमरे में एक अलमारी के नजदीक सरवन की लाश पड़ी थी। जो डाकुओं को देखकर शायद उसी अलमारी में छिप गया था। डाकुओं ने जब अलमारी की तलाशी ली तो वह उनके सामने पड़ गया और उसे गोली मार दी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई। अब तक सरवन को ढूंढ रहा अमित कुमार भी आ पहुंचा। सरवन के शव को डीप फ्रीजर में रख दिया गया।'

साथी कैडैट भूमराम बताते हैं, 'सभी लोगों ने ब्रिज में जाकर देखा तो वहां सब कुछ टूटा-फूटा पड़ा था। जहाज पर मौजूद दवा आदि से घायलों की ड्रेसिंग की गई। जहाज बस किसी तरह सेलिंग कर पा रहा था। और दुबई की ओर बह रहा था। हल्के से तूफान की वजह से जहाज ज्यादा 'मूव' नहीं कर पा रहा था... सो लंगर डाल दिया गया।'

लेकिन, खतरा अभी टला नहीं था...

अभी सभी लोग राहत की सांस लेने की कोशिश कर ही रहे थे कि ऑर्डिनरी सीमैन भूपेंद्र सिंह को फिर से एक और स्पीड बोट जहाज के निकट आती दिखाई दी। यह बोट ईरानी कोस्ट गार्ड की थी। उन्होंने तुरंत लंगर उठाने का आदेश देते हुए कहा कि आप लोग बिना अनुमति के ईरानी समुद्री सीमा में आ गए हो और कस्टडी में हो।

वलसाड के भूपेंद्र सिंह, जयपुर के विकास चौधरी, भूमराम रूंदला और रतिराम जाट (दोनों भाई), रांची के अमित कुमार, लुधियाना के जितेंद्र सिंह, भिवानी के विक्रम सिंह, रेवाड़ी के नरेंद्र कुमार, महाराष्ट्र के प्रकाश जाधव तथा अलीगढ़ के सरवन सिंह ने हैदराबाद के एक मर्चेंट नेवी प्रशिक्षण संस्थान सी-हॉर्स अकादमी ऑफ मर्चेंट नेवी में प्रवेश लिया था। कोर्स के दौरान ही ऑन बोर्ड ट्रेनिंग और नौकरी का वादा किए जाने के चलते इन छात्रों को एजेंटों के जरिए दुबई की बिन खादिम कंपनी के तेल वाहक जहाज 'अल वतूल' पर तैनाती करा दी गई थी। युवकों ने अपने परिजनों को बताया था कि वे शारजाह से ईरान तेल के आयात-निर्यात करने वाले जहाज पर तैनात हैं।

कस्टडी में लिए गए इन सभी लोगों को ईरान के टापू खिश्म लाया गया और वहां उन्हें करीब ढाई महीने रखा गया। इसके बाद उन्हें बंदर अब्बास पर शिफ्ट कर दिया गया। यहां उन्हें 18 महीने रखा गया। सभी कैडेट किसी तरह भारतीय वाणिज्य दूतावास से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। अंतत: सफलता मिली और तकरीबन साढ़े 11 महीने बाद एक फरवरी 2011 को दूतावास के अधिकारी मिलने के लिए पहुंचे। लेकिन सांत्वना के दो बोल बोलने के बजाय उन्होंने अपनी समस्याओं और कुछ न कर पाने में सक्षम होने का रोना ही रोया।

इधर, भारत में मीडिया के हलकों में यह खबर फैलने लगी। जहाज पर मौजूद कैडेटों की खबर न मिलने पर उनके चिंतित परिवारीजन लगातार प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह कोई खोज खबर मिले। परिवारीजनों ने जंतर-मंतर पर अनशन भी किया।

भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकार जब बंदर अब्बास स्थित फंसे इन कैडेटों से मिलने पहुंचे तो उन्होंने इन कैडेटों को बताया कि मीडिया के दबाव में उन्हें यहां आना पड़ा है लेकिन वे ज्यादा कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं हैं। यहां भारत में भी इन कैडेटों के परिजनों ने बंदर अब्बास स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया। बार-बार फोन करने पर कार्रवाई का ‘आश्वासन’ मिला। लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। युवकों में से एक भूपेंद्र सिंह के पिता राजेंद्र सिंह चौधरी और रूंदला बंधुओं के रिश्तेदारों ने भारत में ईरानी दूतावास और विदेश मंत्रालय से भी जानने की कोशिश की लेकिन नतीजा... वही ढाक के तीन पात।

दूतावासों से जल्द कार्रवाई करने के 'सरकारी' जवाब मिलते रहे। विदेश मंत्रालय से बात की तो वे दूतावास से संपर्क करने की बात कह देते दूतावास में संपर्क किया तो विदेश मंत्रालय जाने के लिए कहा गया। एक दूसरे पर टोपी रखने का क्रम अनवरत चलता रहा।

इस संबंध में सभी लापता कैडेटों के परिजनों ने राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मदद की गुहार लगाई। 26 फरवरी को एक बार फिर से भारतीय वाणिज्य दूतावास के कुछ अधिकारी इन कैडेटों से मिलने भी पहुंचे। इस बार भी उनके पास ज्यादा कुछ कहने और करने के लिए नहीं था। 18 महीनों के दौरान लगातार चली कानूनी कार्रवाई में भारतीय वाणिज्य दूतावास पंगु ही नजर आया।

लेकिन, अवैध प्रवेश का मामला और किसी भी प्रकार की तस्करी में लिप्त न होने के चलते आखिरकार 29 फरवरी की वह सुबह इन लोगों की जिंदगी में नया सवेरा लेकर आई जब उन्हें बताया गया कि वे अब छूटने वाले हैं।

ये सभी कैडेट घर लौट तो आए हैं लेकिन अभी तक लगभग 22 महीने की उस त्रासदी को भुला नहीं पा रहे हैं। घर लौटने के बाद से अभी तक इन लोगों की जहाज पर नियुक्ति कराने वाले एजेंट और जहाज के मालिकों से कोई संपर्क नहीं हो पाया है।

A Short Note On Web Based Applications

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