Friday, December 21, 2012

गुजरात की जीत से खुला मोदी के पीएम बनने का रास्ता!

धर्मेंद्र कुमार   

गुजरात में नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार जीत का सेहरा पहना है। 'इंडिया शाइनिंग' के बाद भारतीय लोकतंत्र ने एक बार से फिर से साबित किया है कि उसके लिए किसी तरह के खास मीडिया अभियान कोई मतलब नहीं रखते। गौर से देखा जाए तो इस जीत में भविष्य के कई संकेत छिपे हैं।

गुजरात में 'मोदी मैजिक' के अलावा नि:संदेह कई और कारकों ने भी काम किया है लेकिन विकास के मुद्दे की अहमियत और भ्रष्टाचार रहित प्रशासन देने में मोदी को मिली सफलता ने लोगों को 'मन' बनाने में ज्यादा मुश्किल नहीं आने दी।

अपनी खुद की बनाई मुश्किलों से जूझती मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस मुकाबले के हर दौर में सुरक्षात्मक तरीके से खेलती नजर आई। केशूभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी संभवत: सिर्फ 'मोदी विरोध' के लिए ही लड़ती नजर आई। अब जबकि गुजरात में चुनाव हो गया है और मोदी गद्दीनशीं हो गए हैं तो वक्त है इस बात की चर्चा का कि मोदी की इस जीत से राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा।

जैसा कि पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि इस जीत से मोदी के लिए दिल्ली के रास्ते खुलेंगे... अब शायद इस बहस को और ज्यादा बल मिलेगा... कि मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनेंगे या नहीं...।

एक नजर से देखें तो मोदी के लिए यह बड़ा मुश्किल काम है। देश की वर्तमान राजनीति यूपीए ओर एनडीए के हवाले है। मुसलमानों के खिलाफ बनी मोदी की छवि एनडीए के घटक दलों को विपरीत दिशा में खींचेगी। लेकिन सवाल यह भी है कि कांग्रेस की तेजी से गिरी छवि और भविष्य के नेतृत्व की सही परिभाषा गढ़ पाने में नाकामयाबी के चलते दूसरे दल उसका कितना साथ देंगे...। ऐसे में एक क्षीण संभावना तीसरे मोर्चे की भी बनती है लेकिन छोटे राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान को देखते हुए इसकी संभावना वास्तव में बहुत 'क्षीण' नजर आती है।

... तो ज्यादा संभावना इसी बात की नजर आती है कि राजनीतिक दलों का नया ध्रुवीकरण हो और एनडीए तथा यूपीए की नई परिभाषा बने। यदि ऐसा हुआ तो मोदी के प्रधानमंत्री बनने की राह 'थोड़ी' आसान हो सकती है... क्योंकि उत्तर के राजनीतिक दलों का साथ छोड़ देने पर दक्षिण के कुछ दल एनडीए से जुड़ सकते हैं। खासकर दक्षिण के वे दल जिनके लिए हिंदू-मुस्लिम राजनीति कोई खास महत्व नहीं रखती।

दूसरे, यदि ऐसा न हो सका और बीजेपी अलग-थलग पड़ी तो उसकी संभावना चुनाव के मैदान में पारंपरिक राजनीतिक साथियों के साथ ही जाने की बनती है। और तब बीजेपी संभवत: अपने पुराने मुद्दों के साथ राजनीतिक अखाड़े में कूदने का मन बना सकती है। नि:संदेह हालिया हाथ लगा विकास का मुद्दा भी उसके एजेंडे में ऊपर आ सकता है।

हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि गुजरात में विकास का मुद्दा चल गया है तो बाकी के देश में भी इस मसले पर वोट पड़ जाएंगे। ... और गुजरात की राजनीति के चश्मे से देश की राजनीति को देखना अतिशयोक्ति भी होगा... तो भी यह स्थिति नरेंद्र मोदी के लिए लाभप्रद होगी।

दूसरी ओर, यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी की अंदरूनी खींचतान मोदी के रास्ते में पत्थर बन सकती है लेकिन गुजरात चुनावों में मिली जीत से पार्टी के भीतर उनके विरोधियों के हौसले पस्त ही होंगे।

यदि सब कुछ ऐसे ही रहा और जनता ने कोई 'चौंकाने' वाला परिणाम नहीं दिया तो परिस्थितियां नरेंद्र मोदी के पक्ष में जा सकती हैं।

इन सब संभावनाओं को एक दायरे में रखकर यदि सोचा जाए तो मोदी के लिए रास्ता सुगम बनता है और साल 2014 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो सकता है। ... और यदि वह प्रधानमंत्री बनने में सफल हो जाते हैं तो देश की राजनीति किस करवट बैठेगी यह देखने वाली बात होगी।

Sunday, December 02, 2012

रामायण की कहानी, रुक्मणि की जुबानी...!

सुबह-सुबह अपने बिस्तर से मेरी रजाई में घुसते हुए पांच साल की रुक्मणि ने मुझे रामायण की कहानी कुछ यूं सुनाई...

'डैडी, आपको राम की कहानी सुनाऊं...?'
डैडी : हां, सुना।
'एक लक्ष्मण थे... उन्होंने सीता से कहा कि इस गोले से बाहर मत निकलना...।'
डैडी : अच्छा! फिर...?
'लक्ष्मण चले गए... रावण आया... बोला भिक्षा दो...।'
डैडी : ये भिक्षा क्या होता है...?
'पैसे...?'
डैडी : अच्छा फिर...?
'रावण ने कहा... गोले से बाहर आकर दो भिक्षा। सीता ने मना कर दिया... रावण ने कहा कि भिक्षा दो बाहर आकर तो सीता ने दे दी। रावण ने सीता को उठा लिया और रथ में बिठा लिया...।'
डैडी : यह रथ क्या होता है...?
'रिक्शा...।'
डैडी : अच्छा फिर?
'रावण सीता को ले गया तो राम ने हनुमान को भेजा, सीता को ढूंढो...।'
डैडी : यह हनुमान क्या...?
'बंदर...।'
डैडी : अच्छा फिर?
'हनुमान ने सीता को ढूंढ लिया और राम को बता दिया कि रावण के पास है सीता।'
डैडी : अच्छा फिर...?
'राम रावण के पास पहुंचे... बोले सीता को दो...। रावण ने मना कर दिया। राम ने रावण का सिर काट दिया... लेकिन फिर से एक और आ गया...। राम बार-बार काटते फिर से सिर आ जाता...। तब एक आदमी ने कहा कि रावण की नाभि में तीर मारो।'
डैडी : नाभि क्या होता है...?
'नाभि नहीं जानते... पेट में जो होती है। राम ने तीर मार दिया। रावण मर गया। राम सीता को लेकर घर पर आ गए।'
डैडी : अरे वाह मेरे बेटा... तुझे तो पूरी रामायण याद है... :)
-- धर्मेंद्र कुमार

Tuesday, September 04, 2012

लड़ते रहें तो बड़ी मुश्किलें हो जाती हैं छोटी...

एक समय बड़े किसान रहे पिता की असमय मौत के बाद पैदा हुए अभावों के चलते 10-11 साल का एक किशोर अपने अहाते में उगाई गई सब्जियां लेकर बेचने निकल पड़ता है। मोहल्ले में रहने वाले पिता के दोस्त ने तरस खाकर अपने ऑफिस में 'बड़े साहब' के केबिन के सामने बैठने वाले चपरासी की नौकरी दिलवा दी। वक्त बीता... उस किशोर ने अपनी पढ़ाई-लिखाई किसी न किसी तरह जारी रखी और एक दिन उसी ऑफिस में 'बड़े साहब' की कुर्सी हासिल की।

इतना ही नहीं, अपनी पांच में से चार बहनों की देखभाल और फिर उनकी शादियां कीं... आज सभी बहनें संपन्न घरों में खुशहाल जिंदगी जी रही हैं। सब कुछ फिल्मी सा लगता है लेकिन सच है। मामा जी आज नहीं रहे। जीवन की एक बेहतरीन लेकिन अधूरी पारी खेलते हुए सवेरे-सवेरे नींद मेरे मामाजी मंगलसैन गुप्ता की मृत्यु की खबर से खुली।

मामाजी! आप से हमने यह सीखा है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, लगातार लड़ते जाने से उन्हें बहुत छोटी होते देखा जा सकता है। आपके साथ बिताए पल याद आएंगे, आपसे की गई जिदें याद आएंगी, आपकी बहुत याद आएगी और हर बार साथ में मुश्किलों से लड़ने की नई ताकत भी आएगी...
धर्मेंद्र कुमार

Saturday, August 04, 2012

अन्ना...! और भी हैं तरीके लड़ाई के, राजनीति के सिवाय!

धर्मेंद्र कुमार

अन्ना हजारे और उनकी टीम ने नारियल पानी पी लिया है और उनका कहना है कि अब वे नई ताकत के साथ 'कीचड़ में उतरकर कीचड़ की सफाई' करेंगे। लोगों को शक है कि कीचड़ की सफाई करते समय वे खुद कितना कीचड़ से बचेंगे... लेकिन टीम अन्ना का दावा है कि वे 'जरूर' बचे रहेंगे।

अरविंद केजरीवाल ने कई तरीके बताए भी हैं कि कैसे वे खुद को 'कालिमा' से बचाएंगे। केजरीवाल का कहना है कि उनका उद्देश्य सत्ता हथियाना नहीं है। दिल्ली केंद्रित सरकार को खत्म कर वे सरकार को गांवों में और लोगों के पास ले जाना चाहते हैं। उनके दल में कोई भी हाईकमान नहीं होगा, घोषणा पत्र को जनता ही बनाएगी... और खास बात यह कि जिन पार्टियों के नेता अपने दल में 'घुटन' महसूस कर रहे हों वे उनके 'देशभक्त आंदोलन' में शामिल हो सकते हैं। इतना सब करने के बाद उनके अनुसार अगले तीन सालों में भारत 'बदल' जाएगा।

इतने 'साफ' और 'सुलझे' हुए दृष्टिकोण का यह नमूना हाल-फिलहाल की राजनीति में बिल्कुल नई बात है।

लेकिन, ये हो सकता है कि यह संभव हो... शायद हो भी जाए...। लेकिन इस आदर्श स्थिति को पाने के लिए किए जाने वाले 'ईमानदार' प्रयासों की तीव्रता और क्षमता पर कई सवालिया निशान दिखते हैं।

नेताओं की मानें तो एक सीट पर चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 60 लाख रुपयों की जरूरत पड़ती है और इसमें काला धन जोड़कर यह पांच-छह करोड़ का आंकड़ा बनता है। चुनाव लड़ने के दौरान यह 'जरूरी' धन और इसे पाने के लिए 'बल' वह कहां से लाएंगे, इसके बारे में उन्होंने कोई खास खुलासा नहीं किया है। इसके अलावा सबसे बड़ी चुनौती सभी विधानसभाओं और संसद के लिए प्रत्याशियों के चरित्र की 'गारंटी' है। अन्ना अपनी गारंटी ले सकते हैं, केजरीवाल भी ले रहे हैं... लेकिन बाकियों का क्या होगा।

छीछालेदार राजनीति के शिकार वे होंगे, इसमें कोई शक नहीं है। आरोप लगने के बाद कितने लोगों को वे वापस लेंगे...और कब तक उनके साफ चरित्र होने का सर्टिफिकेट प्राप्त करने का इंतजार करेंगे। और सबसे खास बात... जिन लोगों पर आरोप लगेंगे उनका विकल्प वे कितना बेहतर और कितनी जल्दी उपलब्ध करा पाएंगे। इन सवालों के जवाब या तो टीम अन्ना ने सोचे नहीं हैं या अभी तक बताए नहीं हैं। हो सकता है आने वाले दिनों में इससे निपटने का कोई 'फॉर्मूला' उनके पास हो लेकिन अभी तक इस पर अंधेरा ही दिखता है।

फिलहाल वे चंद उन लोगों से एसएमएस मांगकर राजनीतिक फैसले कर रहे हैं जो वोट देने तक की जहमत नहीं उठाते हैं। हर चुनाव में वोट डालने वाले 60 फीसदी लोग तो एसएमएस करते ही नहीं हैं।

तब फिर कैसे इस लड़ाई को जारी रखा जा सकता था...

कई तरीके थे और हैं... लेकिन उनके लिए धैर्य होना चाहिए और महत्वाकांक्षाओं को परे रखने की जरूरत है।

हमारे करीब 60 साल पुराने लोकतंत्र में एक राजनीतिक लड़ाई और एक सामाजिक लड़ाई लड़ने के तौर-तरीके अलग-अलग हो गए हैं। राजनीति पर सामाजिक रूप से दबाव बनाया जाना ज्यादा आसान और संभाव्य के नजदीक होता है। राजनीतिक पार्टियों पर सामाजिक दबाव बनाकर चीजें हासिल की जा सकती हैं। बेहतर होता अन्ना और उनकी टीम इस दिशा में और प्रयास करती। यह तय करने में लोगों की मदद करती कि कौन संसद और विधानसभाओं में जाने के काबिल है और किसे जाने से रोकना है। इसे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर किया जा सकता था। 'राइट टू रिजेक्ट' का उनका हथियार था, उसका उपयोग करने पर जोर दिया जा सकता था... जो कमियां हैं उन्हें दूर करने की लड़ाई भी लड़ी जा सकती है। परिणाम आते... धीरे-धीरे आते, लेकिन जरूर आते, लोग पहले से भी कई दबाव समूहों के प्रभाव में वोट करते आए हैं। बाद में उन्होंने बदलाव भी किए हैं।

अन्ना के आंदोलन से, खासकर पहले चरण से, काफी लोगों ने सीख ली... वे राजनीतिक रूप से ज्यादा जागरूक लगे। इस चरण के बाद कुछ राज्यों में हुए चुनावों पर उसका साफ असर भी दिखा। लेकिन अब राजनीति में कूदने के बाद वे इस काम को कितना कर पाएंगे... यह सोचने लायक विषय है।

भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार एक मुद्दा है... लेकिन सिर्फ एक मुद्दा ही है। इसके अलावा भी कई और मुद्दे हैं जो राजनीति को प्रभावित करते हैं। वोट डालने से पहले मतदाता भ्रष्टाचार के साथ-साथ कई दूसरे मसलों पर भी सोचता है और तब फैसला करता है। अन्ना सिर्फ भ्रष्टाचार के मसले पर चुनाव लड़ेंगे और वोट भी चाहेंगे... तो उन्हें नहीं मिलेंगे।

धर्म, जाति, उपजाति और आरक्षण जैसे मसलों पर टीम अन्ना क्या रुख अपनाएगी और इसे कैसे वे अपनी प्रकृति के अनुरूप बनाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।

छंटे हुए खांटी राजनीतिज्ञों के साथा 'चौसर का खेल' खेलने के बाद अन्ना और उनकी टीम का चीरहरण अवश्यंभावी लग रहा है। कौन 'कृष्ण' उन्हें बचाएगा इस चीर हरण से... यह भी देखने लायक होगा।

कुल मिलाकर अन्ना आंदोलन खत्म होता दिख रहा है। इस मोड़ पर, निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आंदोलन भटक गया है। बल्कि आंदोलन की 'मौत' हो चुकी है। बेहतर होता कि अन्ना लोगों को और ज्यादा राजनीतिक शिक्षा देते, उन्हें अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लिए और ज्यादा तैयार करते।

लेकिन, एक बात यह कही जा सकती है कि देश की युवा पीढ़ी के एक हिस्से को इस आंदोलन के जरिए यह बताने में अन्ना आंदोलन जरूर सफल हुआ कि कैसे किसी मसले पर जनमत जुटाया जाए... खासकर तब जब उसे फेसबुक और दूसरे गैजेट्स में सिर खपाने से फुरसत न मिल पाती हो...।

Wednesday, July 25, 2012

कंप्यूटर में मंगल फॉन्ट ऐसे करें इंस्टॉल...

मेरे कुछ छात्र लगातार मुझसे यह पूछते रहते हैं कि मंगल फॉन्ट को कंप्यूटर में इंस्टॉल कैसे करें... काफी लंबी-चौड़ी प्रक्रिया है... चैट पर समझाना थोड़ा मुश्किल होता है। यहां मैंने कोशिश की है उन्हें सही से समझाने की... जिनको जरूरत हो, उनके काम आ सकती है यह पोस्ट... जिन्हें एक्सस करने में परेशानी हो रही हो, वे यहां क्लिक करें...
--धर्मेंद्र कुमार

Saturday, July 07, 2012

Some Abbreviations Which Are Not Known To Many Of Us...

नई दिल्ली के नजफगढ़ से अजय सिंह ने कुछ शब्द संक्षेप भेजे हैं... इन्हें देखने से पहले मुझे इनके बारे में ज्यादा पता नहीं था... इसलिए आपके साथ शेयर कर रहा हूं... खासकर Joke, Eat, Date, Chess, Aim, Tea, Pen, Smile, Bye... इत्यादि। मजेदार तो है... :)


धर्मेंद्र कुमार

Friday, May 18, 2012

Mongoose Hair Paint Brushes Recovered In Agra

Hundreds of paint-brushes allegedly made from the hair of mongoose were seized from a shop here Monday evening. We are trying to find out about the supplier of these brushes, said Agra Divisional Forest Officer (DFO) PK Janu, whose team raided the shop, told Agratoday.in.

Tuesday, May 15, 2012

स्पॉट फिक्सिंग का ताजा झटका नुकसान पहुंचाएगा क्रिकेट को

धर्मेंद्र कुमार

स्पॉट फिक्सिंग के ताजातरीन मामले ने क्रिकेट को एक और जोर का झटका दिया है। इस बार इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए हैं।


इंडिया टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में पांच खिलाड़ी पैसे लेकर मनमाफिक तरीके से खेलने के लिए तैयार होते दिखे हैं।

इससे इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट की छवि को तो धक्का पहुंचा ही है वहीं इसका आयोजन करने वाली भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सामने भी फिक्सिंग के आरोपों को गलत साबित करना एक चुनौती बन गया है।

मामला संसद में भी उठा है। समाजवादी पार्टी के सांसद शैलेंद्र कुमार ने इस मुद्दे को उठाया और भारतीय जनता पार्टी के कीर्ति आजाद सहित कई अन्य सदस्यों ने उनका समर्थन किया।

हर बार की तरह इस मामले में भी शामिल खिलाड़ी अपने आपको बेकसूर बता रहे हैं। दूसरी ओर, खेल मंत्री अजय माकन ने बीसीसीआई से इस मामले को जल्दी सुलझाने की बात कही है।

बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन और आईपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला पहले ही दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कह चुके हैं।

इस बार के स्टिंग ऑपरेशन में मनमाफिक खेलने की बात के अलावा कुछ नई बातें भी सामने आई हैं। जैसे कि चैनल ने दावा किया है कि खिलाड़ी अपनी फ्रेंचाइजी टीमों से बीसीसीआई द्वारा तय मानकों से अलग हटकर धन का लेनदेन भी कर रहे हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन को यदि सच मान लिया जाए तो ज्यादातर फ्रेंचाइजी टीमें तय मानकों से अधिक धन खिलाड़ियों को दे रही हैं। इससे खेल के साथ-साथ देश को भी योजनाबद्ध तरीके से नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जबकि क्रिकेट के खेल को देशभक्ति और जुनून की भावनाओं से भी जोड़ा जाता रहा है। खेल प्रेमियों के लिए इससे बड़ा धोखा क्या होगा कि जिस जुनून और जज्बे के साथ वे खेल देखने जा रहे हैं उसका परिणाम पहले से ही फिक्स किया जा चुका है।

इसके अलावा, अभी तक ऐसा माना जाता था कि टेस्ट, वनडे और ट्वेंटी-20 के मैचों पर ही स्पॉट फिक्सिंग का साया है, लेकिन इस बार प्रथम श्रेणी के मैचों पर फिक्सिंग का साया दिखा। कई उदीयमान क्रिकेटर नोबॉल फेंकने के लिए 40 हजार से लेकर 10 लाख रुपये तक मांगते हुए दिख रहे हैं।

कुछ खिलाड़ियों की इस हरकत से उन्हें फौरी तौर पर थोड़ा फायदा जरूर हो सकता है लेकिन ऐसा करके वह खेल की भावना और भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

बीसीसीआई, हालांकि हालातों का जायजा लेने के लिए काफी मेहनत कर रहा है लेकिन ऐसी घटनाओं से क्रिकेट खेल का नुकसान लगातार बढ़ रहा है। देश में बीसीसीआई और दुनिया में आईसीसी को इसपर अब गंभीरता से सोचने की जरूरत है। ताकि इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।

Monday, May 07, 2012

MWS Advertisements’ Booking Rates For New Financial Year

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Sunday, May 06, 2012

How A Newsroom Operates...

By Pat Kelley

The newsroom hierarchy is the manner in which a news-gathering operation is organized. The complexity of the hierarchy changes with the size of the news entity. A very small media set up might have a hierarchy of just two people, an editor and a reporter. A very large organization might have several layers of editors and reporters.

In a newspaper office, at the top of the organizational chart stands the editor. The editor is tasked with setting editorial policy and overseeing the newsroom budget.

In many cases, the editor is a member of the editorial board. Below the editor stands the managing editor, responsible for the day-to-day operations of the newsroom.

A managing editor ensures that deadlines are met and often decides, in consultation with other members of management, which stories go on the front page.

Several editors may report to the managing editor, including the chief of the copy desk, the chief of the design desk, and section editors, such as the business editor, features editor, sports editor and photo editor.

Each section editor may have a deputy or assistant editor. Below the section editors stand the reporters. Photographers report to the photo editor. Designers, who organize the physical layout of words, headlines and pictures, report to the design chief. Reporters report to the section editors or their deputy. Members of the copy desk read stories to ensure grammar, accuracy and taste. They also write headlines.

Television newsrooms differ slightly in their organizational chart. At the top, it is the news director, whose job most closely resembles that of the managing editor in a newspaper in that it manages the day-to-day operations.

In some cases, a well-known anchor may outrank the news director and may exercise significant judgment over presentation of the news broadcast.

The newsroom manager may have an assistant. Reporting to the news director are an anchor or executive producer, who manage production of content and provide guidance for the development of stories.

Producers book satellite feeds and manage the timing of the show. They report to an executive producer or anchor.

Assignment editors, who may also report to the anchor or executive producers, assign stories to reporters based on tips, items on the newswires and competitors' broadcasts.

Reporters generally report to producers.

In addition to reporters, there are video editors and photographers.

One recent trend, enabled by smaller cameras and more reliable mobile technology, is the development of the backpack reporter, who shoots, edits and writes his or her own stories.

In the web, the role of Internet operations differs from newsroom to newsroom, reflecting, perhaps, the newness of Internet operations. In some cases, Internet operations are completely set apart from the newsroom. They have access to news content, but little say in its development.

In other operations, Internet operations are closely intertwined with the newsroom and may have a role in selection and allocation of resources.

Web staffers may report to the managing editor or editor in the newspaper. In TV newsrooms, the Web staff may report to the news director.

In some news operations, the Internet staff is a completely separate business unit.

In newspapers, the editor reports to the publisher, who oversees the business operations of the newspaper. The publisher usually has a say in the development of opinion-based editorials, but is not considered a member of the newsroom. Similarly, the ad director at both types of news organizations is not a member of the newsroom.

In response to intense pressure from the Internet, some newsrooms have reformatted their hierarchy. In some cases, this is done to reduce the number of layers of management.

(Author is Philadelphia-based freelance Writer)

Tuesday, May 01, 2012

प्रदर्शन कर रहे इग्नू छात्रों की पुलिस से झड़प

धर्मेंद्र कुमार

नई दिल्ली : नियमित पाठ्यक्रमों को बंद करने की कार्यवाहक उप कुलपति की कवायद के विरोध में प्रदर्शन कर रहे इग्नू छात्रों और पुलिस के बीच मंगलवार को झड़प हुई, जिसके बाद 56 छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया।

पिछले कुछ दिनों से विश्वविद्यालय के मु्ख्य दरवाजे पर इंदिरा गांधी की मूर्ति के नीचे भूख हड़ताल कर रहे इन छात्रों ने मंगलवार को मेन गेट का दरवाजा बंद कर दिया और उप कुलपति प्रो. एम. असलम का रास्ता रोका। जिसके बाद मौके पर से उप कुलपति तो चले गए लेकिन कुछ ही देर बाद इग्नू प्रशासन ने पुलिस को बुला लिया।

पुलिस ने जबर्दस्ती दरवाजा खुलवाने की कोशिश की जिसके कारण छात्रों और पुलिस में झड़प हो गई। उसके बाद पुलिस ने वहां मौजूद सभी छात्रों को हिरासत में ले लिया। हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने उन्हें नेब सराय पुलिस थाने में रखा हुआ है। छात्रों ने वहां मौजूद एक प्रो. ई. वायुनंदन पर भद्दी गालियां देने का भी आरोप लगाया है।

बाद में नेब सराय के एसएचओ हिरासत में लिए गए कुछ छात्रों को लेकर उपकुलपति के पास बातचीत के लिए ले गए हैं। इस मसले पर अभी तक इग्नू प्रशासन ने कुछ नहीं कहा है।

उल्लेखनीय है कि इग्नू के नियमित पाठ्यकमों के छात्र कार्यवाहक उप कुलपति एम. असलम के उस प्रयास का विरोध कर रहे हैं जिसके तहत वह पिछले उप कुलपति द्वारा लॉन्च किए गए इन पाठ्यक्रमों को बंद करना चाह रहे हैं। गौरतलब है कि असलम जल्द ही रिटायर होने वाले हैं।

सूत्रों के मुताबिक इग्नू में कुल 21 विभाग हैं, जिनमें से 14 विभागों के अध्यक्षों ने नियमित पाठ्यक्रमों को चलाने की हामी भरी है, लेकिन अभी भी इस साल के लिए नए प्रवेशों की अधिसूचना जारी नहीं की गई है। छात्र इसी मसले को लेकर नाराज हैं। छात्रों सहित कुछ फेकल्टी मेंबर्स ने भी अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि दरअसल इस तरह देरी करके वह शैक्षिक सत्र को अनियमित करना चाह रहे हैं।

कुछ फेकल्टी मेंबर ने तो यहां तक कहा कि यह दो गुटों की लड़ाई जैसी हो गई है, यहां छात्रों का हित तो बहुत पीछे छूट गया है। पहला गुट वह है जो नियमित कक्षाओं को बंद करवाना चाहता है, क्योंकि वे क्लास लेने के लिए राजी नहीं हैं, दूसरा गुट वह है जो नियमित कक्षाओं को जारी रखना चाहता है। इन दो गुटों की लड़ाई में छात्र पिस रहे हैं। विडंबना यह है कि कार्यवाहक उप कुलपति नए उप कुलपति का इंतजार करना भी नहीं चाह रहे हैं।

पूर्व में छात्रों के एक समूह ने इस सिलसिले में मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को भी एक ज्ञापन दिया है।

Saturday, April 21, 2012

चाहत (Chahat)



शिक्षा सबको मिले... यह अधिकार तो संविधान ने दे दिया लेकिन क्या सबको शिक्षा मिलना उतना ही आसान है...? समाज के हर तबके को अच्छे दर्जे की शिक्षा मिले, क्या इसे हमारा समाज व्यावहारिक बना पाया है... इसी समस्या पर नजर डालने की एक कोशिश है यह लघु फिल्म...

Thursday, April 19, 2012

Being Human (बीइंग ह्यूमैन)



सरकार और समाज द्वारा दिए गए अधिकारों का अनुचित लाभ उठाने के बजाय यदि हर पद और स्थान पर बैठा व्यक्ति उसे दिया गया काम पूरी जिम्मेदारी और तन्मयता से करे तो हमारी समस्याओं को खत्म होने में जरा भी देर नहीं लगेगी। यही संदेश दे रही है यह लघु फिल्म 'बीइंग ह्यूमैन'...

Tuesday, April 03, 2012

Writing Tips For Different Media

By Dr. Mrinal Chatterjee

Today's communicators are called on to write for an increasing number of media including print and broadcast media, web sites, social networks, and also for mobile platform. So how do you –- as a communicator –- effectively write for different media utilising the strength of each medium?

Here are some conceptual tips:

Possess clarity of thought -– If, as a writer, you are not clear on what you want to communicate, then chances are your writing will not be clear, concise or compelling.

Know your audience -– This will enable you to tailor your style, message and story to the audience and its needs.

Craft a compelling story -– Effective storytelling arouses the emotions of the listener/reader. It draws readers into the drama and has the power to shift perceptions. Some guidelines to follow when crafting a story:

* Don't tell. Show
* Make it interesting
* Use analogies
* Provide the point

Be consistent -- Communicators have increasing opportunities to share information and engage with others. However, it is important not to stray from the core facts. Make sure you are consistent across all forms of communication. The kernel of a story must be the same across media.

Keep communication concise -– Consider the attention span of your audience. Researchers in Britain carried out a study and found an average person's attention span today is just five minutes and seven seconds compared to 12 minutes ten years ago. As communicators we get limited opportunities to grab our readers' attention. Headlines matter. Make sure each word counts.

Understand the medium –- What works for one media may not work in the other. Try to understand the requirements and demands of individual media and write accordingly. Do your research; investigate successes and flops with the specific medium.

Here are some medium-specific tips:

Newspapers
* Generally more in–depth than broadcast pieces.
* All questions (what, when, who, why, where and how -- 5 W and 1 H) should be answered.
* Generally write news in inverted–pyramid style (most important information comes first). However, in case of features and columns one has opportunity to play with words and structure.
* Often stories need visuals (photos, graphics and or tables).

Radio
* Write for the listener's ear, rather than the reader's eye. Use words carefully. Avoid using words which are difficult to pronounce and understand.
* Sentences should be crisp and short. As there is hardly any opportunity to go back to the sentence immediately, the emphasis should be on comprehensibility.
* News stories can generally last from 15 to 90 seconds.
* Do not try to cram in smallest details in the script. Information overload makes radio programme boring.
* Record natural wild sound (running buses, planes taking off, conference chatter).
* Interviews should be conducted in relatively quiet areas because loud background noise can make your edited piece sound choppy.

Television
* Try to coordinate the words with the pictures (don't force it!). Remember, visuals are more important in this medium. Let the visuals speak.
* Like radio, sentences should be crisp and short. Long sentences are difficult to remember. Do not use tongue twisters. Try to use simple words. One practical way to write for television and radio is to read aloud while writing. If you find any word difficult or ill fitting, change it.
* News stories generally run from 30 seconds to three minutes.
* Factor 1 or 2 seconds of silence between each shot so the viewer can absorb the images on the screen

Internet
*The major difference between traditional media and web media is that people don't read entire web pages; they scan or see the pages. People pay full attention at interesting parts. Innumerable studies have been done on the subject. One of the most prominent of these reports, performed by John Morkes and Jakob Nielsen, found that 79% of test users always scan an entire page, searching for things that might pique their interest. Only 16% of all test subjects read them word per word. This fact highlights several things that are a must for web writing:

* easy-to-scan format (tiny paragraphs/thumbnails, bulleted items, headings and sub-headings highlights on important items).
* Use relevant keywords for easy search.
* Generally should be up to 250-300 words per page.
* Keep in mind that you can link to other sites, sidebars.
* Stories do not have to be as linear as in other media.
* The ideal structure is `tad-pole'. Long tailing is the operating idea.

(The author, a journalist turned media academician, heads the Eastern India campus of Indian Institute of Mass Communication (IIMC) located at Dhenkanal, Odisha)

Tuesday, March 27, 2012

‘समुद्री डाकुओं से बचे तो ईरानी पुलिस ने पकड़ा’

बीच समुद्र में अगर कुछ अनजान लोग बंदूकें लहराते हुए आपके जहाज पर हमला बोल दें तो क्या करेंगे आप? यही सवाल कैडेट भूपेंद्र सिंह के सामने एक दिन अचानक हकीकत बनकर उभरा.

रोमांचक काम और अच्छे वेतन की चाह में मर्चेन्ट नेवी में भविष्य तलाश रहे हजारों भारतीयों में भूपेंद्र भी शामिल हैं.

पढ़ाई पूरी कर पहली नौकरी में ही दूर देश जाने का मौका मिलने पर भूपेंद्र की खुशी का ठिकाना नही रहा. जहाज में दौरे पर नौ और भारतीय थे जिनके मिलने के बाद उन्हे लगा कि ये समुद्री सफर वहीं सुहाना सफर है जिसके सपने वो अक्सर देखा करते थे.

लेकिन हुआ इसका ठीक उलटा....उस सफर ने जो यादें छोड़ी उसे वो भूलना ही पसंद करते है.

भूपेंद्र सिंह नाविकों के उस दल में शामिल थे जिनके जहाज पर ईरान के करीब समुद्र में डाकुओं ने हमला बोल दिया, इस हमले में नाविकों के दल ने एक साथी भी खो दिया. तमाम कानूनी पचड़ों में फंसने के बाद भूपेंद्र और उनके साथी कुछ दिन पहले ही भारत लौटे है.

कैडेट भूपेंद्र सिंह की आपबीती

15 मई, साल 2010 की सुबह हमारा जहाज ‘अल वतूल’ स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज से होकर कोरसक्कान जा रहा था.

दुबई के बिन खादिम कंपनी के तेल वाहक जहाज पर हम दस भारतीय सवार थे.

सब कुछ रोज की तरह सामान्य लग रहा था कि तभी जहाज के चालक दल को अपने पास दो मोटरबोट आते दिखे.

"हमारे कप्तान विक्रम सिंह ने डाकुओं को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर चाकू मार दिया गया. एक और साथी नरेंद्र कुमार के कंधे पर चाकू घोपकर उन्हे घायल कर दिया गया."

मोटरबोट पर सवार छह लोगों ने हमारे कप्तान से पानी मांगा. उन्हें पानी के दो बोतल दे दिए गए जिसके बाद वो चले गए.

कुछ ही देर बीता था कि मोटरबोटों पर सवार ये लोग वापस आए और अल वतूल पर रस्सियों के सहारे चढ़ने लगे.

जहाज के डेक पर चढ़ते ही इन हथियारबंद हमलावरों ने गोली बारी शुरू कर दी.

प्रतिरोध की कोशिश

हमारे कप्तान विक्रम सिंह ने हमलावरों को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर चाकू मार दिया गया. एक और साथी नरेंद्र कुमार के कंधे पर चाकू घोपकर उन्हे घायल कर दिया गया.

ये समुद्री डाकू थे, किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि इस मुसीबत से कैसे निबटा जाए.

जहाज पर मौजूद कुछ लोग गोलियों की आवाज सुनकर छुप गए थे और बाकियों को एक कमरे में बंद कर दिया गया. मै भी इन बंदियों में शामिल था.

इन डाकुओं के पास तरह-तरह के हथियार थे.

हम सब को कमरे में बंद करके डाकुओं ने जमकर लूटपाट किया. हमारे पैसे, कपड़े, सैटेलाइट फोन, वॉकी टॉकी, कैमरे समेत सभी महंगी चीजे लूट ली गई.

जहाज का रडार, जीपीएस और वीएचएफ सिस्टम को भी तोड़ डाला गया.

हम कमरे में बंद ही थे कि तभी एक बार फिर गोली की आवाज सुनाई दी.

साथी की मौत

किसी अनहोनी की आशंका के बीच बाहर चहलकदमी की आवाज थमी तो हम सभी हिम्मत जुटाकर बाहर निकले.

किसी जगह छुपा साथी जीतेन्द्र भी बाहर आया, लेकिन श्रवण का कही अता-पता नहीं था.

बहुत खोजने पर उसकी लाश बगल के कमरे में एक अलमारी में मिली. उसे अलमारी में छुपा पाकर वहीं गोली मार दी गई थी.

हमने श्रवण की लाश को खराब होने से बचाने के लिए उसे जहाज के डीप फ्रीजर में रख दिया.

अभी हादसे को भूलकर आगे बढ़ने का सोचा ही था कि मौसम खराब हुआ और हमें वही लंगर डालना पड़ा.

लेकिन हमारी मुसीबतें यही खत्म नहीं हुई.

ईरानी कोस्ट गार्ड

हमारे जहाज को ईरानी कोस्ट गार्ड के स्पीड बोटों ने घेर लिया. हमे उनके साथ जहाज लाने का आदेश दिया गया.

कोस्ट गार्ड ने हमसे कहा कि हमारा जहाज बिना अनुमति के ईरान की सीमा में प्रवेश कर गया है.

हम सभी को हिरासत में लेकर ईरान के एक टापू खिश्म ले जाया गया जहां अगले ढाई महीने तक हमें रखा गया.

इस बीच हम अपने घर और भारतीय दूतावास संपर्क करने की कोशिश करते रहे लेकिन सफलला नहीं मिली.

फिर हमें बंदर अब्बास के एक जेल में शिफ्ट कर दिया गया, जिस दौरान हमारे खिलाफ ईरान में अवैध प्रवेश और तेल तस्करी करने के मामले चलाए गए.

इस जेल में हमें अगले 19 महीनों तक रखा गया.

भारतीय दूतावास से भी अदालती कार्यवाही में कोई खास मदद नहीं मिली. सांत्वना के कुछ बोल के अलावा उनका रवैया पूरे मामले के प्रति बेहद लचर रहा.

जेल के दिन

भूपेंद्र सिंह के पिता ने उनकी रिहाई के लिए गुजरात से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में भी गुहार लगाई.

इधर जेल में भी हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा.

ईरानी नागरिक बहुल जेल में हम नौ भारतीयों को खूब डराया-धमकाया जाता था.

खाने में सुबह एक रोटी और शाम को थोड़ा सा चावल दिया जाता था. हम शाकाहारी है सो साथ में परोसे गए मांस को हाथ नहीं लगाते थे.

उधर हम जेल में दिन काट रहे थे और इधर भारत में मीडिया और राजनीतिक हलकों में ये मामला प्रखर होकर उभरा.

दिल्ली के कुछ पत्रकारों खासकर धर्मेंद्र कुमार ने मदद की. हालांकि दूतावास से कोई खास मदद नहीं मिली.

घर वापसी की खुशी

दुबई की बिन खादिम कंपनी, जिसके लिए हम काम करते थे उसके किसी अधिकारी ने दो सालों में हम से हाल भी नहीं पूछा. किसी तरह की वित्तीय सहायता भी नहीं दी गई.

कुल साढ़े इक्कीस महीनों तक ईरान की जेल में रहने के बाद इस साल 29 फरवरी को हमें बताया गया कि अदालत ने हमें निर्दोष पाकर बरी कर दिया है.

घर वापस आकर अच्छा लग रहा है. लेकिन जिस कंपनी के लिए काम किया, जान खतरे में डाली उसकी ऐसी बेरूखी गुस्सा और दुख दोनों की अनुभूति कराती है.

कुछ दिन घर में रहकर एक बार फिर जाना चाहता हूं समुद्री यात्रा पर लेकिन इस बार शायद मां-बाप मुझे इसकी इजाजत नही देंगे.

(साभार : तुषार बनर्जी/बीबीसी हिंदी)

Friday, March 16, 2012

साधारण बही खाते सा दिखा प्रणब का बजट!

धर्मेंद्र कुमार

रेल बजट के 'ट्रैक' से उतर जाने के बाद प्रणब दा ने आम बजट को संसद में पेश कर दिया। पांच राज्यों में हालिया हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए इस बजट से आम आदमी को कुछ 'खास' मिलने की उम्मीदें जग गई थीं। लेकिन कमोबेश उन उम्मीदों पर पानी ही फिरा है। तमाम तरह की प्रतिक्रियाओं के बीच जैसा कि भाकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा भी कि इस तरह का बजट तो एक 'क्लर्क' भी बना सकता था। यदि पूरे बजट पर निगाह डाली जाए तो यह वैसा ही साधारण बही-खाता जैसा लगा जिन्हें गांव में हर साल दिवाली पर अपडेट किया जाता है।

एक रिवाज जैसा बन गया कर छूट का मामला पहले की तरह ही दिखा। सामान्य श्रेणी के लिए आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई। पिछले कुछ सालों से यही चलन चलता चला आ रहा है। हालांकि एक परिवर्तन जरूर दिखा। अब आठ लाख रुपये की जगह 10 लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आय पर 30 फीसदी कर लगेगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस तरह से मामूली राहत का झुनझुना ही दिखाया है।

सेवा कर को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया है। इस बढ़ोतरी से लगभग हर क्षेत्र में दाम बढ़ेंगे। पहले से ही महंगाई से त्रस्त आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। सेवा कर के साथ-साथ उत्पादन शुल्क में वृद्धि से आम आदमी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ज्यादातर चीजें और सेवाएं महंगी हो जाएंगी। दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएं महंगी होने जा रही हैं। कारें और सोना खरीदना तो महंगा हुआ ही है, कभी-कभार रेस्त्रां में जाकर दावत उड़ाना भी महंगा हो गया है।

छह विशिष्ट जीवनरक्षक दवाओं एवं टीकों से उत्पाद शुल्क पूरी तरह खत्म करने एवं सीमा शुल्क घटाकर पांच फीसदी की रियायत देने से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों की पहले से ही बहुत महंगी दवाइयां कुछ सस्ती जरूर हो जाएंगी।

देश के विकास के लिए उद्योगों का विकास होना बहुत जरूरी है, लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट में कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे औद्योगिक विकास की सम्भावना को बल मिलता दिखे।

वित्त मंत्री ने सिंचाई सुविधा और भंडारण के लिए बजट में धन का आवंटन बढ़ाने और किसानों द्वारा समय पर चुकाए जाने वाले कर्जे में तीन फीसदी की अतिरिक्त छूट जैसी कुछ चंद अच्छी बातें जरूर की हैं लेकिन सबसे मूल मुद्दा बढ़ती महंगाई है, जिसे इस बजट के जरिए रोका जाना मुश्किल दिख रहा है। नई उर्वरक परियोजनाओं की स्थापना एवं विस्तार के लिए आवश्यक उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में पूरी छूट मिलने की बात कही गई है। इससे किसानों को कुछ फायदा होगा।

10 लाख रुपये की वार्षिक आय सीमा वालों को अंशधारिता (इक्विटी) में 50,000 रुपये के निवेश पर आयकर में 50 फीसदी की छूट देने के लिए एक नई कर छूट योजना 'राजीव गांधी शेयर बचत योजना' का प्रस्ताव रखा गया है, हालांकि, इस योजना के सम्बंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन 10 लाख रुपये सालाना कमाने वाला पहले से ही कर बचत के लिए कई और मदों में निवेश कर रहा व्यक्ति इस योजना में कितना निवेश कर पाएगा, यह सोचने वाली बात है। शेयरों में इस तरह के सीधे निवेश से अभी तक बचे जाने की राय ही दी जाती थी लेकिन अब इससे एक विरोधाभास पैदा होगा। खास बात यह है कि इसमें किया गया निवेश तीन साल से पहले निकाला नहीं जा सकेगा। इस बीच यदि शेयरों में अच्छा मुनाफा हुआ तो इस निवेश का कोई अर्थ नहीं रहेगा। हालांकि मुखर्जी ने शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाले शुल्क को भी 0.125 फीसदी से घटाकर 0.1 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा। इससे जरूर शेयर बाजार में कुछ निवेश वृद्धि की संभावना बनती है।

सरकार ने अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रमों की शेयर बिक्री के जरिये 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में विनिवेश लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपये था लेकिन सरकार सिर्फ 14,000 करोड़ रुपये ही जुटा पाई। इसलिए इस बार इसे 10 हजार करोड़ रुपये कम रखा गया है। बाजार की खराब रही स्थिति को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है लेकिन इसे सरकार की असफलता से भी जोड़कर देखा जा सकता है।

बीते कई सालों के दौरान इस बजट में पहली बार बुजुर्गों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं किए गए हैं। बुजुर्गों के लिए 60 से 80 साल की आयु तक 2.50 लाख रुपये की आमदनी पर पहले की तरह कोई कर नहीं लगेगा। 80 साल से अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों को पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर देय नहीं होगा। हालांकि अब महिलाओं और पुरुष करदाताओं के लिए करमुक्त आय में कोई अंतर नहीं रहा है। इससे पहले पुरुषों के लिए 1.80 लाख तथा महिलाओं के लिए 1.90 लाख रुपये तक की आय करमुक्त होती थी।

हैमलेट का उल्लेख कर प्रणब दा ने यह जरूर कहा कि दयावान बनने के लिए क्रूरता जरूरी है लेकिन पहले से ही महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त सरकार और कितनी क्रूरता दिखाना चाहती है यह समझ से परे है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह सरकार अगले साल अपने अंतिम बजट में कुछ 'लोकप्रिय' प्रावधान ला सकती है जिनसे उसे चुनावों में कुछ मदद मिल सके। इसलिए इस बार तो इसी बजट से गुजारा करना है। तब तक देश की जनता इसी तरह परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार रहे...।

Sunday, March 11, 2012

समुद्री डाकुओं के हमले की आपबीती कहानी!

धर्मेंद्र कुमार
'साल 2010 में 15 मई की सुबह स्ट्रेट ऑफ होर्म्ज होकर कोरसक्कान जा रहे 'अल वतूल' जहाज के पास दो स्पीड बोट पर सवार 6 लोग आए... उन्होंने दूर से पानी मांगा... जहाज के कैप्टन ने पानी दिया... और बोट पानी लेकर वापस चली गई। फिर दूर सागर में एक चक्कर लगाकर लगभग पांच-सात मिनट में फिर से वही स्पीड बोट वापस लौटी... वोट में से 4-5 लोग चलते जहाज से लटके टायरों के सहारे प्लेटफॉर्म पर चढ़ आए... और चढ़ते ही फायरिंग शुरू हो गई...।'

अपने साथ घटी अनहोनी का वृतांत सुनाते कैडेट भूपेंद्र सिंह बताते हैं, 'जहाज के कैप्टन विक्रम सिंह बाहर निकले तो सबसे पहले उन्हीं पर हमला कर दिया गया। उन्हें काबू में कर जहाज पर मौजूद सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा होने के लिए कहा गया। इस दौरान चीफ इंजीनियर नरेंद्र कुमार ने कुछ हरकत की तो उन्हें चाकू से घायल कर दिया। इस अफरातफरी में दो कैडेट सरवन सिंह और जितेंद्र सिंह दो अलग-अलग जगहों पर छिप गए। बाकी के लोगों को घेरकर एक कमरे में ठेल दिया गया। कुछ लोगों को सारा लगेज एक तरफ रखने का हुक्म दिया गया। सारा सामान तथा हाथों में और जेबों में जो कुछ था वो सब छीन लिया गया।'

'इसके बाद, ब्रिज में जाकर रडार, जीपीएस और वीएचएफ सिस्टम को तोड़ डाला। सैटेलाइट फोन, मोबाइल फोन, वॉकी टॉकी को अपने हवाले कर वापस स्पीड बोट पर सवार होकर चले गए। जाते-जाते कमरे का दरवाजा भी बंद कर गए। कुछ देर तक जहाज पर पूरी तरह शांति रही तो हिम्मत जुटाकर आठों लोग दरवाजा तोड़कर बाहर निकले। वहीं कहीं छिपा हुए जितेंद्र सिंह भी बाहर निकल आया। वहीं बाजू के कमरे में एक अलमारी के नजदीक सरवन की लाश पड़ी थी। जो डाकुओं को देखकर शायद उसी अलमारी में छिप गया था। डाकुओं ने जब अलमारी की तलाशी ली तो वह उनके सामने पड़ गया और उसे गोली मार दी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई। अब तक सरवन को ढूंढ रहा अमित कुमार भी आ पहुंचा। सरवन के शव को डीप फ्रीजर में रख दिया गया।'

साथी कैडैट भूमराम बताते हैं, 'सभी लोगों ने ब्रिज में जाकर देखा तो वहां सब कुछ टूटा-फूटा पड़ा था। जहाज पर मौजूद दवा आदि से घायलों की ड्रेसिंग की गई। जहाज बस किसी तरह सेलिंग कर पा रहा था। और दुबई की ओर बह रहा था। हल्के से तूफान की वजह से जहाज ज्यादा 'मूव' नहीं कर पा रहा था... सो लंगर डाल दिया गया।'

लेकिन, खतरा अभी टला नहीं था...

अभी सभी लोग राहत की सांस लेने की कोशिश कर ही रहे थे कि ऑर्डिनरी सीमैन भूपेंद्र सिंह को फिर से एक और स्पीड बोट जहाज के निकट आती दिखाई दी। यह बोट ईरानी कोस्ट गार्ड की थी। उन्होंने तुरंत लंगर उठाने का आदेश देते हुए कहा कि आप लोग बिना अनुमति के ईरानी समुद्री सीमा में आ गए हो और कस्टडी में हो।

वलसाड के भूपेंद्र सिंह, जयपुर के विकास चौधरी, भूमराम रूंदला और रतिराम जाट (दोनों भाई), रांची के अमित कुमार, लुधियाना के जितेंद्र सिंह, भिवानी के विक्रम सिंह, रेवाड़ी के नरेंद्र कुमार, महाराष्ट्र के प्रकाश जाधव तथा अलीगढ़ के सरवन सिंह ने हैदराबाद के एक मर्चेंट नेवी प्रशिक्षण संस्थान सी-हॉर्स अकादमी ऑफ मर्चेंट नेवी में प्रवेश लिया था। कोर्स के दौरान ही ऑन बोर्ड ट्रेनिंग और नौकरी का वादा किए जाने के चलते इन छात्रों को एजेंटों के जरिए दुबई की बिन खादिम कंपनी के तेल वाहक जहाज 'अल वतूल' पर तैनाती करा दी गई थी। युवकों ने अपने परिजनों को बताया था कि वे शारजाह से ईरान तेल के आयात-निर्यात करने वाले जहाज पर तैनात हैं।

कस्टडी में लिए गए इन सभी लोगों को ईरान के टापू खिश्म लाया गया और वहां उन्हें करीब ढाई महीने रखा गया। इसके बाद उन्हें बंदर अब्बास पर शिफ्ट कर दिया गया। यहां उन्हें 18 महीने रखा गया। सभी कैडेट किसी तरह भारतीय वाणिज्य दूतावास से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। अंतत: सफलता मिली और तकरीबन साढ़े 11 महीने बाद एक फरवरी 2011 को दूतावास के अधिकारी मिलने के लिए पहुंचे। लेकिन सांत्वना के दो बोल बोलने के बजाय उन्होंने अपनी समस्याओं और कुछ न कर पाने में सक्षम होने का रोना ही रोया।

इधर, भारत में मीडिया के हलकों में यह खबर फैलने लगी। जहाज पर मौजूद कैडेटों की खबर न मिलने पर उनके चिंतित परिवारीजन लगातार प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह कोई खोज खबर मिले। परिवारीजनों ने जंतर-मंतर पर अनशन भी किया।

भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकार जब बंदर अब्बास स्थित फंसे इन कैडेटों से मिलने पहुंचे तो उन्होंने इन कैडेटों को बताया कि मीडिया के दबाव में उन्हें यहां आना पड़ा है लेकिन वे ज्यादा कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं हैं। यहां भारत में भी इन कैडेटों के परिजनों ने बंदर अब्बास स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया। बार-बार फोन करने पर कार्रवाई का ‘आश्वासन’ मिला। लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। युवकों में से एक भूपेंद्र सिंह के पिता राजेंद्र सिंह चौधरी और रूंदला बंधुओं के रिश्तेदारों ने भारत में ईरानी दूतावास और विदेश मंत्रालय से भी जानने की कोशिश की लेकिन नतीजा... वही ढाक के तीन पात।

दूतावासों से जल्द कार्रवाई करने के 'सरकारी' जवाब मिलते रहे। विदेश मंत्रालय से बात की तो वे दूतावास से संपर्क करने की बात कह देते दूतावास में संपर्क किया तो विदेश मंत्रालय जाने के लिए कहा गया। एक दूसरे पर टोपी रखने का क्रम अनवरत चलता रहा।

इस संबंध में सभी लापता कैडेटों के परिजनों ने राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मदद की गुहार लगाई। 26 फरवरी को एक बार फिर से भारतीय वाणिज्य दूतावास के कुछ अधिकारी इन कैडेटों से मिलने भी पहुंचे। इस बार भी उनके पास ज्यादा कुछ कहने और करने के लिए नहीं था। 18 महीनों के दौरान लगातार चली कानूनी कार्रवाई में भारतीय वाणिज्य दूतावास पंगु ही नजर आया।

लेकिन, अवैध प्रवेश का मामला और किसी भी प्रकार की तस्करी में लिप्त न होने के चलते आखिरकार 29 फरवरी की वह सुबह इन लोगों की जिंदगी में नया सवेरा लेकर आई जब उन्हें बताया गया कि वे अब छूटने वाले हैं।

ये सभी कैडेट घर लौट तो आए हैं लेकिन अभी तक लगभग 22 महीने की उस त्रासदी को भुला नहीं पा रहे हैं। घर लौटने के बाद से अभी तक इन लोगों की जहाज पर नियुक्ति कराने वाले एजेंट और जहाज के मालिकों से कोई संपर्क नहीं हो पाया है।

A Short Note On Web Based Applications

A web based application is a software package that can be accessed through the web browser. The software and database reside on a central server rather than being installed on the desktop system and is accessed over a network.

Web based applications are the ultimate way to take advantage of today's technology to enhance your organizations productivity and efficiency. Web based application gives you an opportunity to access your business information from anywhere in the world at anytime. It also facilitates you to save time and money and improve the interactivity with your customers and partners.

It allow your administration staff to work from any location and sales staff to access information remotely 24 hours a day, 7 days a week. With a computer connected to the Internet, a web browser and the right user name and password you can access the systems from any location.

Web-based applications are easy to use and can be implemented without interrupting your existing work process. Whether you need a content managed solution or an e-commerce system, it can be develop a customized web application that fulfills your business requirements.

Web applications are popular due to the ubiquity of web browsers and the convenience of using a web browser as a client, sometimes called a thin client. The ability to update and maintain web applications without distributing and installing software on potentially thousands of client computers is a key reason for their popularity, as is the inherent support for cross-platform compatibility.

Common web applications include webmail, online retail sales, online auctions, wikis and many other functions.

Here, I am trying to list some free web based applications which are very helpful for you to process your daily work. If you are designer, developer, office worker, manager, supervisor, student, home user etc. these applications may be of use. Just take a look...

1. Google Calendar: It is a contact- and time-management web application offered by Google.

2. Horde groupware: It is an open source web application for our email needs.

3. Phonevite: Sending reminders and alerts, with your own voice, is easy and simple using Phonevite. With this tool, you can send free phone reminders and alerts to yourself and/or your friends in 3 quick, easy steps.

4. Google Docs: You can import your existing documents, spreadsheets and presentations, or create new ones from scratch. Invite people to your documents and make changes together, at the same time. All you need is a Web browser.

5. Crazyegg: Crazy Egg will help you improve the design of your site by showing you where people are clicking and where they are not.

6. Windows Live OneCare safety scanner: It is a free service designed to help ensure the health of your PC.

7. Hooeey: It is a personal web application that records all web links that you browse and lets you use them in a fun and productive way.

8. Vuzit: Vuzit is a web based document viewer you can embed in any web page.

9. Codepaste: It provides an easy and convenient way to send/share PHP, C++, Javascript, Java, CSS, Actionscript and HTML code with others. Copy and paste the code and enter the email where you want the CodePaste to send it. CodePaste then nicely formats the code and sends it over.

10. Sprout Builder: It is the quick and easy way for anyone to build, publish, and manage widgets, mini-sites, banners and more.

11. Infoencrypt: This is service for securing your messages in an easy way. All you need is only to enter a message text of your message and encryption password. The password will be used for both encryption and decryption. Anyone who intercepts the encrypted message without password will not be able to read original message.

12. Premier Survey: Free survey software for online surveys, web surveys, email surveys. Free Online survey software for customer satisfaction surveys, employee satisfaction surveys, market research surveys.

13. Primo Online: It provides a super-fast way to create PDF files online, without the need to install any PDF software. Simply upload your file, enter your email address, and server-based PDF creator will quickly convert it to PDF and deliver it straight to your email inbox.

14. Adobe Buzzword: It is a new online word processor, perfect for writing reports, proposals, and anything else you need to access online or work on with others. It looks and behaves like your normal desktop word processor, but it operates inside a web browser, so there’s no installation required.

15. ShrinkFile.NET: It is a free resource to compress your text documents, images, PDF files and other data online, because some computers don’t have WinZip or WinRAR installed. ShrinkFile.net will host the uploaded content at a static URL for one week, allowing you to share the file with family and friends.

16. Awesome Highlighter: It lets you highlight text on web pages and then gives you a small link to the highlighted page.

17. CreativePro Office: It is the most complete set of online office management tools to manage your team, clients, projects, invoices, events from one web-based application.

18. Hide My Ass: An anonymous free proxy service aimed at hiding your online identity. You can use this service to hide your IP address and bypass your work/school web filter with ease.

19. RescueTime: It is time management software that helps individuals and businesses understand how they spend their time, and provides tools to help them spend it more productively.

20. Picnik: It makes your photos fabulous with easy to use yet powerful editing tools. Tweak to your heart’s content, then get creative with oodles of effects, fonts, shapes, and frames.

Tuesday, February 28, 2012

उप्र चुनाव : छठे चरण में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर

धर्मेंद्र कुमार

नई दिल्ली (भारत): उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के छठे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 13 जिलों की 68 सीटों पर 86 महिलाओं सहित कुल 1103 उम्मीदवार मैदान में हैं जिनकी किस्मत का फैसला करीब 2.14 करोड़ मतदाता करेंगे। इस चरण में 37 निवर्तमान विधायक भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

इस चरण के तहत जिन 13 जिलों में मतदान होना है, उनमें गौतमबुद्धनगर (नोएडा), गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, आगरा, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, प्रबुद्धनगर, पंचशीलनगर, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर शामिल हैं।

तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और शांतिपूर्ण मतदान के लिए सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। हरियाणा और दिल्ली की सीमा से लगे हुए विधानसभा क्षेत्रों में सुरक्षा की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है।

मतदान के लिए कुल 22,137 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। मतदान प्रक्रिया में 30,028 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल होगा।

प्रदेश में होने वाले इस चरण के मतदान में कई दिग्गजों की किस्मत दांव पर है, जिसमें वर्तमान सरकार के कुछ मंत्री भी हैं।

इस चरण में बहुजन समाज पार्टी सरकार के पांच मंत्री- रामवीर उपाध्याय हाथरस की सिकन्दराराऊ सीट से, जयवीर सिंह अलीगढ़ की बरौली सीट से, वेदराम भाटी मेरठ की किठौर सीट से, चौ. लक्ष्मी नारायण मथुरा की छाता सीट से और धर्म सिंह सैनी सहारनपुर की नकुड़ सीट से चुनाव मैदान में हैं।

अन्य दिग्गजों में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) प्रमुख अजित सिंह के बेटे एवं मथुरा से सांसद जयंत चौधरी मथुरा की मांट सीट से, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह प्रबुद्धनगर की कैराना सीट से चुनावी अखाड़े में हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के इस चरण के प्रचार अभियान में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भाजपा और बसपा सहित अन्य दलों के नेताओं ने ताबड़तोड़ रैलियां कर अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

ब्रजक्षेत्र यानी आगरा और अलीगढ़ मंडलों की 40 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में बॉलीवुड की कई हस्तियों ने भी राजनीतिक चोला ओढ़कर चुनाव प्रचार किया।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी, सपा मुखिया मुलायम सिंह, बसपा अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री मायावती और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, भाजपा के ही अरुण जेटली, रालोद प्रमुख अजित सिंह आदि नेताओं ने प्रमुख क्षेत्रों जैसे आगरा, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, हापुड़, हाथरस, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो किए हैं।

आगरा शहर से 28 पार्टी मैदान में हैं। यहां मुकाबला चतुष्कोणीय नजर आता है लेकिन कुछ छोटे दल और निर्दलीय प्रत्याशी वोट काटने की स्थिति में हैं। अमर सिंह के अभियान से मुलायम सिंह मुसीबत में पड़ सकते हैं तो टिकट न मिलने से नाराज कई दूसरे प्रत्याशी भी मुश्किलें खड़ी कर पा रहे हैं। फतेहपुर सीकरी सीट पर टिकट न मिलने से नाराज राजकुमार चाहर निर्दलीय चुनाव लड़कर रालोद के बाबू लाल को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

आगरा जनपद में कुल नौ सीटें हैं जिनमें पिछली बार बसपा को 6 सीटें मिली थीं। लेकिन इस बार सीटों के परिसीमन और किसी के पक्ष में कोई खास हवा न होने के चलते सभी राजनीतिक दल ऊहापोह की स्थिति में हैं। पिछली बार यहां 43 फीसदी वोट पड़े थे लेकिन इस बार अन्ना फैक्टर के चलते और पहले पांच दौर के मतदान को देखते हुए इसके कम से कम 60 फीसदी तक होने का अनुमान है।

आगरा से लगे मथुरा जनपद में कमोबेश स्थिति ऐसी ही है। विश्लेषकों के अनुसार बसपा को नुकसान तो होगा लेकिन कितना इसपर कोई खुलकर आकलन नहीं कर पा रहा है।

इस चरण में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की साख भी दांव पर लगी है क्योंकि उनके बेटे एवं जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) अध्यक्ष राजवीर सिंह बुलंदशहर की डिबाई सीट से और पुत्रवधू प्रेमलता अलीगढ़ की अतरौली सीट से किस्मत आजमा रही हैं। इसके अलावा पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी और रालोद नेता कोकब हमीद भी चर्चित चेहरे हैं।

प्रदेश में अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने बेटे राजवीर सिंह को डिबाई विधानसभा क्षेत्र से जिताने की है।

कभी भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता रहे कल्याण सिंह को बुलंदशहर में काफी सम्मान प्राप्त है। उनसे जुड़े लोध राजपूतों के वर्चस्व को चुनौती देते हुए विरोधियों ने राजवीर सिंह के लिए भी मजबूत किलेबंदी तो कर ही रखी है, खुद अपने भी उन्हें चक्रव्यूह में घेरने की कोशिश में लगे हुए हैं। राजवीर के सामने चुनौती पिछले विधानसभा चुनाव की हार का बदला लेने की भी है। पिछली बार बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार श्रीभगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित ने उन्हें हार का स्वाद चखाया था। इस बार शर्मा सपा के टिकट पर मैदान में हैं। बसपा ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई विनोद उपाध्याय को मैदान में उतारा है लेकिन राजवीर की असली परेशानी तो भाजपा के उम्मीदवार रवींद्र सिंह बढ़ा रहे हैं। पहली बार चुनाव मैदान में उतरे रवींद्र सिंह पूर्व विधायक राम सिंह के पुत्र हैं, जो कल्याण सिंह के काफी करीबी माने जाते थे। भाजपा ने लोध वोट बैंक में सेंधमारी की गरज से ही राम सिंह को पहले प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन उन्होंने अपने पुत्र का नाम आगे कर दिया।

डिबाई विधानसभा क्षेत्र में बात विकास की करें, तो यहां की बदहाली को देखकर यही लगता है कि यहां के जनप्रतिनिधियों ने विकास को कोई तवज्जो नहीं दी है।

स्थानीय लोगों की मानें तो ऊर्जा मंत्री के भाई के चुनाव मैदान में उतरने के कारण बिजली आपूर्ति थोड़ी सुधरी है, लेकिन वह भी चुनाव से ऐन पहले।

डिबाई विधानसभा क्षेत्र के जातीय आंकड़ों की बात करें, तो यहां लोध राजपूत मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक करीब 92,000 है, जो निर्णायक साबित होती है। इसके अलावा मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 38,000, क्षत्रिय 16,000 और जाट मतदाताओं की लगभग 18,000 संख्या भी उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करने में महत्वपूर्ण साबित होगी।

अलीगढ़ जनपद की सात विधानसभा सीटों पर 1197148 पुरुष और 957556 स्त्री मतदाता अपने प्रतिनिधि का चयन करेंगे।

नए परिसीमन के कारण हाई प्रोफाइल सीट और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के गढ़ अतरौली में उनकी पुत्रवधु व जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) की प्रत्याशी प्रेमलता वर्मा, भाजपा के राजेश भारद्वाज, सपा के वीरेश यादव, बसपा के साकिब, कांग्रेस के विजेंद्र सिंह और राष्ट्रीय सवर्ण दल के चमन शर्मा का बहुकोणीय मुकाबला है।

अलीगढ़ शहर विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी जफर आलम, भाजपा के आशुतोष वार्ष्णेय, कांग्रेस के योगेश दीक्षित, बसपा के संजय शर्मा और रासद के प्रत्याशी डॉ. सीपी गुप्ता के बीच मुकाबला है।

बरौली क्षेत्र से बसपा सरकार में मंत्री रहे जयवीर सिंह तीसरी बार सफलता प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। रालोद के दलवीर सिंह, भाजपा के मुनीश गौड़, सपा के मोहन लाल बघेल, जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) के केशव सिंह और रासद के गजेंद्र सिंह उन्हें टक्कर दे रहे हैं।

कोल विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी विवेक बंसल, सपा के जमीरुल्ला, बसपा के जियाउर्रहमान और भाजपा के योगेंद्र लालू दौड़ में शामिल हैं।

रालोद की परंपरागत सीट माने जाने वाले इगलास क्षेत्र में पार्टी के प्रत्याशी त्रिलोकीराम परंपरा को कायम रखने की कोशिश करेंगे। उनका बसपा के राजेंद्र कुमार, भाजपा की रामसखी कठेरिया से कड़ा मुकाबला है।

रालोद के ही दूसरे गढ़ खैर क्षेत्र में पार्टी के प्रत्याशी भगवती प्रसाद और बसपा की राजरानी मुख्य दौड़ में शामिल हैं। भाजपा के अनूप वाल्मीकि और सपा के गुरविंदर सिंह भी अपनी पूरी ताकत झोंकी है।

छर्रा में सपा प्रत्याशी राकेश सिंह, कांग्रेस के परवेज अहमद, बसपा के मूलचंद्र बघेल और जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) के रवेंद्र पाल सिंह में कड़ी टक्कर है।

आगरा में राजनीतिक विश्लेषक बृज खंडेलवाल ने बताया, "पिछले पांच चरणों के मतदान के बाद कोई भी पार्टी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है। इस दौर के मतदान के बाद भी स्थिति बदलती नहीं दिख रही। इस बार का चुनाव बिल्कुल अलग किस्म का है। पूरी तरह सक्रिय भूमिका निभा रहा निर्वाचन आयोग इसके लिए धन्यवाद का पात्र है, जिसने अपने तेवर में कोई नरमी नहीं दिखाई और न ही किसी पार्टी को कोई छूट दी।"

क्षेत्रीय मीडिया और गैर सरकारी संगठनों ने भी मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए कई सिलसिलेवार कार्यक्रम चलाए हैं।

इस दौर में खास बात जो देखने में आई है वह यह है कि इस बार चुनावों पर पैसे का असर नहीं दिख रहा है। प्रशासन सख्ती से नजर रख रहा है।

(कुछ अंश एजेंसियों से)

Saturday, February 25, 2012

Overview of Netscape Composer

Netscape Composer is an HTML editor initially developed by Netscape Communications Corporation in 1997, and packaged as part of the Netscape Communicator, Netscape 6 and Netscape 7 range of Internet suites.

In addition, Composer can also view and edit HTML code, preview pages in Netscape Navigator, check spelling, publish websites, and supports most major types of formatting.

Composer was initially developed by Netscape as a component of the company's internet suites; however, after the company was bought by AOL in 1998, further development of its codebase was made open source and overseen by the Mozilla Foundation. Subsequent releases of Netscape Composer were based upon Mozilla Composer, the same utility within the Mozilla Application Suite.


You can download this software from here...

Sunday, February 19, 2012

Overview of Dreamweaver

Adobe Dreamweaver (formerly Macromedia Dreamweaver) is a proprietary web development application originally created by Macromedia, and is now developed by Adobe Systems, which acquired Macromedia in year 2005.

Dreamweaver is available for both Mac and Windows operating systems. Recent versions have incorporated support for web technologies such as CSS, JavaScript, and various server-side scripting languages and frameworks including ASP (ASP JavaScript, ASP VBScript, ASP.NET C#, ASP.NET VB), ColdFusion, Scriptlet and PHP.

You can download its trial version from here...

Saturday, February 18, 2012

कालिंदी कॉलेज के पत्रकारिता विद्यार्थियों की 'SENTENTIAS'

दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज में पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों ने एक पत्रिका 'SENTENTIAS' (सेनटेंशियास) का प्रकाशन किया है...  सेनटेंशियास एक स्पेनिश शब्द है जिसका मतलब होता है... राय (Opinions)।

संपादकीय मंडल में शामिल ऐशानी गुप्ता पूर्व में एनडीटीवीखबर.कॉम में बतौर प्रशिक्षु रह चुकी हैं। उन्हें और उनकी टीम को एक बेहतरीन पत्रिका के प्रकाशन के लिए बधाई...  पूरी पत्रिका आपको पढ़ने के लिए उपलब्ध करा रहा हूं...
--- धर्मेंद्र कुमार


Monday, February 06, 2012

Overview of Photoshop

Adobe Photoshop is a graphics editing application popular for it's extensive amount of features.

Currently, Photoshop is the leading graphics editing application.

Photo shop is also an image creation software as well as an editor. Photo shop can create any effect or style needed in a drawing or painting or layout. There are graphic software that can do specialized work faster and more efficient than Photo shop (such as painter for realistic paint effects), but Photo shop can do it all in one program.

The basics of Photo shop are easy to learn, even the CS versions. They are very intuitive, and there are several ways to do almost everything to work with an individual's style of drawing and skill level yet you can spend years learning all the pro level features.

Photo shop works by altering individual pixels in an image as opposed to a vector drawing program that draws with points, lines and objects mathematically. Photo shop is best with images that have complex textures, blends and photo realism, but Photo shop is also very good at vector drawing as long as the image doesn't need to be scaled and you don't need specialized CAD drawing tools.

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