Thursday, June 24, 2010

Why Indians Get Attacked Abroad...

पिछले दिनों दुनिया के कई भागों में भारतीयों पर हमले होने की खबरें आईं। हिंदुस्तानियों की सबसे ज्यादा पिटाई ऑस्ट्रेलिया में हो रही है... कुछ खबरें न्यूजीलैंड और अमेरिका से आईं। एक-दो खबर जापान से भी आई। क्या वजह है यकायक बढ़े इन हमलों की। खासकर विश्वव्यापी मंदी के एक मुश्किल दौर के बाद... सैन फ्रांसिस्को से सुषमा खंडेलवाल ने ये कहानी भेजी है... एक वजह कहीं
यह तो नहीं... :)
---धर्मेंद्र कुमार
A nice one to laugh and feel proud too! WHY INDIANS GET ATTACKED ABROAD?

It was the first day of a school in USA and a new Indian student named Ansh entered the Third grade.

The teacher said, "Let's begin by reviewing some American History.

Who said 'Give me Liberty, or give me Death'?"

She saw a sea of blank faces, except for Ansh, who had his hand up: 'Patrick Henry, 1775' he said.

'Very good! Who said 'Government of the People, by the People, for the People, shall not perish from the Earth?''

Again, no response except from Ansh. 'Abraham Lincoln, 1863' said Ansh.

The teacher snapped at the class, 'Class, you should be ashamed. Ansh, who is new to our country, knows more about its history than you do.'

She heard a loud whisper: 'F**K the Indians,' 'Who said that?' she demanded. Ansh put his hand up. 'General Custer, 1862.'

At that point, a student in the back said, 'I'm gonna puke.'

The teacher glares around and asks 'All right! Now, who said that?' Again, Ansh says, 'George Bush to the Japanese Prime Minister, 1991.'

Now furious, another student yells, 'Oh yeah? Suck this!'

Ansh jumps out of his chair waving his hand and shouts to the teacher , 'Bill Clinton, to Monica Lewinsky,1997'. Now with almost mob hysteria someone said 'You little sh*t. If you say anything else, I'll kill you.' Ansh frantically yells at the top of his voice, ' Michael Jackson (RIP) to the child witnesses testifying against him- 2004.'

The teacher fainted. And as the class gathered around the teacher on the floor, someone said, 'Oh sh*t, we're screwed!' And Ansh said quietly, 'I think it was the American people, November 4th, 2008".(recession time)..... :)

Sunday, June 13, 2010

Boss Will Be Boss!

बॉस तो बॉस ही रहेंगे... कभी बदलेंगे नहीं... हम जब बॉस हो जाएंगे तो ऐसे ही...:)

बॉस और उसके मातहतों के बीच क्या रिश्ता हो... इस पर खूब बहस होती है। वास्तव में एक बॉस का काम अपने मातहतों में जिम्मेदारी का भाव जगाने का है। आदर्श स्थितियों में यदि कोई बॉस इस काम को कर लेता है तो वह 'सफल' कहलाता है। लेकिन इस आदर्श स्थिति को हासिल करना इतना आसान नहीं होता। कुछ बॉस इस स्थिति को पाने का प्रयास करते हैं... आगे बढ़ जाते हैं... उनकी बनती है टीम... उनका प्रदर्शन देखने लायक होता है।

लेकिन जो बचते हैं इससे... कुछ भी हासिल नहीं कर पाते हैं... न सफलता, न लोगों का साथ, न प्यार, न सम्मान... मिलता है तो बस अकेलापन, गालियां और ना जाने क्या-क्या। हां... कुछ तात्कालिक सफलताएं जरूर मिलती हैं। लेकिन ये नाकाफी होती हैं।

अपने अभी तक के बहुत छोटे से करियर में मैंने इस स्थिति से गुजरते हुए कई लोगों को देखा है। जिनकी ऑफिस में कभी तूती बोलती थी और बस उन्हीं की तूती बोलती थी... बाकी किसी को कुछ भी बोलने का अधिकार ही न था... रिटायरमेंट के बाद या नौकरी से निकाले जाने के बाद यह कहते सुने गए कि 'यार कभी आया करो घर पर... कुछ सुनेंगे... कुछ बोलेंगे...' और कोई नहीं पहुंचता उनके घर। जब तक ऑफिस में रहे तब तक उन्होंने किसी को कुछ भी बोलने नहीं दिया और जब ऑफिस से बाहर चले गए तो कोई उनसे कुछ बोलना नहीं चाहता।

इसके उलट कुछ लोग ऐसे भी हैं। जिन्होंने कम से कम प्रयास किया एक अच्छा बॉस बनने का। ऐसे कोई तीन-चार लोगों को मैं जानता हूं जिनके साथ मुझे काम करने का मौका मिला। उनमें से कुछ अभी रिटायर भी हुए हैं। लेकिन सिर्फ एक अदद नौकरी से। वे आज भी अपनी उसी टीम के साथ पत्रकारिता कर रहे हैं। और इसे वे अपनी जिंदगीभर की कमाई मानते हैं।

लेकिन यहां यह ध्यान रखना बड़ा जरूरी है कि हमारे साथ जो होता है उसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं कोई और नहीं... अगर कुछ मानकों को लेकर हम आगे बढ़ें तो आदर्श बॉस बना जा सकता है। इतना मुश्किल काम भी नहीं है...।

नई दिल्ली से सौरभ बंसल ने यह कार्टून भेजा है। मजे लेकर पढ़-देख सकते हैं।
--धर्मेंद्र कुमार

Thursday, June 10, 2010

तो हो जाएगी सब जगह बारिश...

धर्मेद्र कुमार
'बारिश वक्त से पहले ही हो रही है...' 'गर्मी वक्त से पहले ही जा रही है...' 'इस बार खट्टे रहेंगे आम...' 'ठंड के दिनों में ही पक रहे हैं आम...' ऐसी दो-चार कुछ और खबरें भी इस साल की शुरुआत में सुनने को मिलीं। इन खबरों पर पर्यावरणविदों के विचार और चिंताएं भी सुनीं। पिछले साल भी कुछ ऐसा ही माहौल था। इस साल भी... और अगले साल भी कुछ दूसरी ऐसी ही खबरें कुछ दूसरे 'फलों' और 'वजहों' के बारे में सुनने को मिल सकती हैं।

पिछले साल इन खबरों पर कोई खास तबज्जो नहीं दी गई... शायद इस बार भी नहीं दी जा रही है... और इस बात की पूरी संभावना है कि अगले साल भी ऐसा ही कुछ... तथा 'अद्भुत' खबरों के रूप में इन खबरों को पेश कर दिया जाएगा।

अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में कुछ प्रस्ताव आए थे। नदियों को नहरों के द्वारा जोड़ा जाना था... और इसकी वजह थी बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाव। इसके पक्ष और विपक्ष में कई तरह के मत सामने आए। हालांकि अब इस प्रस्ताव पर कोई काम नहीं हो रहा है लेकिन इसका एक समझदारीभरा उपयोग शुरू में दी गई खबरों की 'हेडिंग' को सुनने से बचने में किया जा सकता है।

पंजाब में सुल्तानपुर के निकट हरिके बराज से निकाली गई करीब 650 किमी लंबी इंदिरा गांधी नहर के प्रयोग से प्रेरणा ली जा सकती है। पंजाब, हरियाणा के कुछ इलाकों तथा मुख्यतया राजस्थान के जैसलमेर से होकर जाने वाली इस नहर की वजह से कई मौसमी परिवर्तन देखने को मिले हैं। नहर के दोनों ओर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया है। इससे न केवल वहां बारिश के रंग-ढंग बदल गए हैं बल्कि दैनिक जीवन में वहां खुशहाली भी बढ़ी है। जैसलमेर का यह इलाका अपनी रेगिस्तानी प्रकृति के लिए मशहूर है। लेकिन अब नजारा बदल गया है। इस नहर के बनने से पिछले दो साल के दौरान मानसून के रास्ते में बदलाव देखा गया है। सघन हरियाली की ओर मानसून आकर्षित हुआ है और इस वजह से उत्तरी भारत के इलाकों में बारिश कम दर्ज की गई है। जबकि इंदिरा गांधी नहर जिन इलाकों से होकर गुजरती है वहां बारिश में बढ़ोतरी देखी गई है। इतना ही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में कम बारिश के लिए कुछ पर्यावरणविद् इस नहर को 'जिम्मेदार' ठहरा रहे हैं।

जहां पहले बारिश नहीं होती थी या कम होती थी वहां अब खूब और समय से पहले ही हो रही है। और, मानसून के उस ओर दिशा ले लेने से जहां पूर्व में ज्यादा बारिश दर्ज की जा रही थी वहां अब यह कुछ कम हो गई है। मौसम में बदलाव की वजह कई हैं। लेकिन यह भी एक प्रमुख वजह है।

मौसम विभाग के आकड़े देखें तो यह नजर आता है। रेगिस्तानी जैसलमेर में इंदिरा गांधी नहर के चलते इस इलाके के करीब 6800 वर्ग किमी क्षेत्रफल में सिंचाई के साधन बढ़े, हरियाली बढ़ी, खासकर नहर के किनारे किए गए वृक्षारोपण से... इससे मानसून का खिंचाव उधर बढ़ा। इसे अच्छा माना जा सकता है। इस प्रयोग को देशभर में दोहराया जा सकता है। सब जगह समय से बारिश हो सकती है। सरकार को जरूरत है इस ओर ध्यान देने की... इस मॉडल को अपनाने की। इसको लेकर कुछ पर्यावरणविदों ने चिंता जताई थी कि इससे मानसून गड़बड़ा सकता है। वे सही हो सकते हैं... लेकिन नदियों, नहरों और तालाबों को जोड़ने के लिए बहुत ज्यादा आक्रामक रणनीति बनाने की भी जरूरत नहीं है। हम कह सकते हैं कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए। इंदिरा गांधी नहर का प्रयोग कम से कम पिछले दो साल में सही साबित हुआ है... सही तरह से संतुलित योजना बनाई जानी चाहिए और मौसम की बदली चाल से प्रभावित क्षेत्रों पर खास ध्यान देते हुए ये प्रयोग दोहराए जाने चाहिए।
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