Thursday, April 23, 2009

Walnuts May Prevent Breast Cancer

Walnut consumption may provide the body with essential omega-3 fatty acids, antioxidants and phytosterols that reduce the risk of breast cancer, according to a study presented at the American Association for Cancer Research 100th Annual Meeting 2009.

Elaine Hardman, associate professor of medicine at Marshall University School of Medicine, said that while her study was done with laboratory animals rather than humans, people should heed the recommendation to eat more walnuts.

“Walnuts are better than cookies, french fries or potato chips when you need a snack,” said Hardman. “We know that a healthy diet overall prevents all manner of chronic diseases.”

Hardman and colleagues studied mice that were fed a diet that they estimated was the human equivalent of two ounces of walnuts per day. A separate group of mice were fed a control diet.

Standard testing showed that walnut consumption significantly decreased breast tumor incidence, the number of glands with a tumor and tumor size.

Wednesday, April 15, 2009

कौन बने हमारा प्रधानमंत्री!

धर्मेंद्र कुमार
चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं। राजनीतिक दलों के घोषित-अघोषित मुखिया पीएम की कुर्सी 'हथियाने' की तैयारियों में जुट गए हैं। मुख्य मुकाबला मनमोहन सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी के बीच दिख रहा है। लेकिन, कुछ छिपे हुए खिलाड़ी भी मैदान में हैं जो अपने भाग्य से 'छींका' टूटने की उम्मीद कर रहे हैं। कहीं-कहीं तो एक ही दल से दो-दो दावेदार उभर कर सामने आ रहे हैं। जिनके बस का खुद प्रधानमंत्री बनना नहीं है वे दूसरों पर 'टोपी' रख रहे हैं। उन्हें सहला रहे हैं कि आप से बेहतर कोई नहीं है। आप ही बन जाइए। इस बीच जनता क्या चाहती है, ये जानने की जरूरत शायद हमारे नेताओं को कतई नहीं है।

इन नेताओं को इनके हाल पर छोड़ते हैं... लोगों का रुख करते हैं। लोग क्या चाहते हैं...इसे जानने की कोशिश करते हैं।

लोगों के बीच प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए हो रही बहस को अगर सुना जाए तो आगाज इस मुद्दे पर होता है कि वह नौजवान हो या उम्रदराज, अनुभवी...। एक नौजवान में अगर अनथक काम करने का उत्साह होता है तो उम्रदराज शख्सियत में अपार अनुभव। ऐसा कोई नेता वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नहीं दिख रहा जिसमें इन दोनों चीजों का संतुलित समावेश हो। अभी तक उभरे नामों में युवाओं की श्रेणी में केवल एक उम्मीदवार है जबकि बाकी के दावेदार राजनीति के क्षेत्र के जमे हुए खिलाड़ी हैं।

जब आम जनता युवक उम्मीदवार की ओर हसरत भरी नजरों से देखती है तो डर लगता है कि कहीं हश्र ब्रिटेन के विदेशमंत्री 'डेविड मिलीबैन्ड' जैसा न हो जाए। जो कुछ भी कह देने में 'पूरा' यकीन करते हैं। चाहे उसका परिणाम फिर कुछ भी हो। दुनिया में चल रही उथल-पुथल को देखते हुए जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बढ़ गई है। नौसिखियों पर भरोसा करना इतना सहज नहीं है। वहीं दूसरी ओर, जो अनुभवी हैं वे डंबल उठाकर कसरत कर यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे 'नौजवान' हैं। बिना किसी रणनीति के कैसे 'परफॉर्म' करना है, कोई पता नहीं। क्या कार्यक्रम है अगले पांच सालों के लिए, कोई अता-पता नहीं। बस कोशिश यह है कि कैसे दूसरे प्रतिद्वंद्वी को 'नीचा' दिखाना है ताकि जनता की नजरों में 'ऊंचे' हो जाएं।

लोगों को हैरानी तो तब होती है जब एक ही दल में एक अनुभवी और एक नौजवान उम्मीदवार के बीच प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलती है। जनता अगर उस पार्टी को चाहे तो उसे उन दावेदारों में से एक को चुनना है। आम लोग यहां बंटे नजर आते हैं। लोगों में इस बात को लेकर भ्रम हो सकता है कि नए उत्साह को तरजीह दें या पुराने अनुभव को।

दूसरा मुद्दा जिस पर लोग राय बना सकते हैं वह यह है कि पिछले साल से मंदी की भीषण मार झेल रहे देश को कैसे आगे आने वाले दौर में बचाएं। वर्तमान प्रधानमंत्री का एक अच्छा अर्थशास्त्री होना उनके पक्ष में जा सकता है। लेकिन, उन्हीं की पार्टी के भीतर एक पूरा तबका नहीं चाहता कि वह दोबारा प्रधानमंत्री बनें।

इनके अलावा, दूसरे जो 'छिपे' दावेदार हैं, उनकी कहानी भी बड़ी अजब है। ये लोग राजनीतिक समीकरण बनाने में जुटे हुए हैं। किसी का ध्यान लोकसभा में चुनकर आने वाले सांसदों की संख्या पर है तो किसी का सोशल इंजीनियरिंग पर। अगले पांच साल के लिए कार्यक्रम इनके पास भी नहीं है। ये कार्यक्रम तब बनेगा जब कुर्सी मिल जाएगी। लेकिन, अच्छी बात यह है कि इस श्रेणी के नेताओं पर लोगों की राय इस बार कुछ अच्छी नहीं है। अभी तक उभरे नामों में से तीन नाम इसी श्रेणी के हैं। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में ये बात बिल्कुल साफ होकर सामने आई। अगर इस सर्वे पर विश्वास करें तो लोगों ने इन्हें एकदम से नकारा है।

अब जरूरत यह है कि लोग एक ऐसा आदमी इस पद के लिए ढूंढें जिसके पास नौजवानों जैसा उत्साह हो, उम्र के साथ मिला अनुभव हो तथा वर्तमान विश्व में छाई दुश्वारियों से लड़ने का माद्दा हो...है कोई...देखें जरा अपने आस-पास!

चलते-चलते :
अभी, मुझे एक मेल मिला है जिसके अनुसार पत्रकार जरनैल सिंह के गृहमंत्री पी चिदंबरम पर जूता उछाले जाने से नाराज एक संगठन आगरा में 'जूता फेंको प्रतियोगिता' का आयोजन करने पर विचार कर रहा है। 'ऑल इंडिया जूता फेंको फेडरेशन' नाम के इस संगठन द्वारा आयोजित इस प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धियों को 'रिजेक्टेड' जूते उपलब्ध कराए जाएंगे। इन जूतों को वे 'भारतीय राजनीतिक जंगल' के जानवरों' के कट-आउट्स पर मारेंगे। जो प्रतिस्पर्धी सही निशाना लगाएगा उसे एक जोड़ी जूते पुरस्कार में मिलेंगे। आयोजकों का कहना है कि इससे मंदी के मारे उन जूता निर्यातकों को भी मदद मिलेगी जिनके ऑर्डर 'रिजेक्ट' हो रहे हैं। प्रतिस्पर्धियों को उपलब्ध कराए जाने वाले ये 'रिजेक्टेड' जूते इन्हीं कंपनियों के होंगे। संगठन ने सभी लोगों से अपने जूते भेजने का आग्रह भी किया है।

Saturday, April 11, 2009

MWS Launches New Ad Campaign For Its Brand Mediabharti.com




Faridabad (India) (Mediabharti Syndication Service) 10 April: Mediabharti Web Solution launched a new advertisement campaign for its brand ‘Mediabharti.com’ and its other sub-domains such as ‘Career’ (a complete career and education guide), ‘Lipstick’ (a dedicated website for women) and the movie section.





For the promotion of the ‘Career’ sub- domain, there are two creatives. One is aptly titled 'Your way to go ahead' while the other focuses on 'Giving your career a headstart,' @ career.mediabharti.com. In second creative, a person is shown atop a mountain brooding and reflecting the success story of one individual while in the other, a ladder has been shown as a symbol of the chosen path to success.





Two other creatives for the women's section of ‘Mediabharti.com’, are clubbed under ‘Lipstick’projecting aptly well defined feminine tastes.





While the copy of one reads as 'Your friend in all times', showing some rouge and lipstick marks, truly feminine, the other one is a little titillating and naughty, titled 'Strictly for women, Men are not allowed'.





The Creative for Mediabharti.com's Cinema section offers tempting glimpses of the Bollywood world and routes to its 'Broadband' section too.





The main creative to promote the entire portal reflects Mediabharti.com's global reach and a serious endeavor to offer a wide range of inputs to provide a total package tailor-made to suit the requirement of viewers and surfers.


Creatives have been prepared by reputed contemporary artistes and designers.

Wednesday, April 01, 2009

ऐसे पैदा होते हैं नेता...

धर्मेंद्र कुमार
देखते-देखते एक और नेता 'पैदा' हो गया। पैदा होना इसलिए, क्योंकि कुछ माह पहले तक इस 'नेता' के बारे में लिखे गए वेबपेज 'सर्वाधिक देखे गए वेबपेजों की सूची' से नदारद थे। लेकिन, अभी पिछले कई दिनों से पहली पांच खबरें इसी 'उदीयमान' नेता की हैं।

अपने पत्रकारिता जीवन के शुरुआती दौर की एक घटना मुझे याद आ रही है...आगरा में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त एक व्यक्ति की पुलिस थाने में पिटाई के बाद उसके फोटो अखबार में छपने के लिए आए हुए थे। उन्हें छपने के लिए चुन लिया गया। इस पर मेरे एक सहयोगी के मुख से त्वरित प्रतिक्रिया हुई, 'सर! फोटो छपते ही नेता बन जाएगा यह...'। ऐसा ही हुआ। मैं वहां अगले छह महीने और रहा और वह 'श्रीमान' एक अग्रणी राजनीतिक दल के एक बड़े नेता बन चुके थे। उनकी प्रेस विज्ञप्तियां लगातार छपने के लिए आ रही थीं। और हम... छाप रहे थे।

ऐसा क्यों होता है...ये सवाल है...कल तक वरुण गांधी अपना अस्तित्व ढूंढ़ रहे थे। हाथ-पैर मार रहे थे, लेकिन 'सफलता' कोसों दूर थी। आज वह खुश हैं और अपने साथियों से कह रहे हैं कि अब 'डिमांड' बढ़ गई है। आखिर जिम्मेदार कौन है...। पढ़ें
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